इस कहानी की शुरुआत होती है दो बिल्लियों से। एक बार की बात है दोनों बिल्लियां कहीं पर जा रही थी। रास्ते में उन्हें एक रोटी मिला। रोटी को अकेले खाने के लिए दोनों बिल्लियां आपस में झगड़ा करना चालू कर दि।

दोनों बिल्लियों में संतोष नाम का कोई चीज भी नहीं था। वे आपस में बहुत ही ज्यादा झगड़ा कर रही थी। मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।

उसी रास्ते से एक बंदर गुजर रहा था। उस बंदर ने दोनों बिल्लियों से कहा– “मैं इस रोटी का बंटवारा कर सकता हूं!”

दोनों बिल्लियां उस बंदर की बात को मान गई। अब बंदर ने रोटी को दो हिस्सों में तोड़ दिया। एक हिस्सा थोड़ा बड़ा था, तो बंदर ने उसे तोड़ कर खा लिया। बंदर के खाने से अब दूसरा टुकड़ा बड़ा हो गया। उस चालाक बंदर ने दूसरे टुकड़े में से भी थोड़ा तोड़कर खा लिया।

इसी प्रकार से वह रोटी के दोनों टुकड़ों को थोड़ा-थोड़ा करके खाता गया और दोनो बिल्लियां उसके मुंह को देखती रही।अंत में उस रोटी का दो बहुत ही छोटा छोटा टुकड़ा बचा।

अब उस चालाक बंदर ने बिल्लियों से कहा – “अब तुम इतने छोटे-छोटे टुकड़ों को क्या करोगी? इससे अच्छा यही है कि छोटे टुकड़े को भी मैं ही खा ले रहा हूं।” अंत में बंदर ने उस रोटी के छोटे टुकड़े को भी खा लिया। दोनों बिल्लियों की लड़ाई में बंदर ने बाजी मार ली। अब दोनों बिल्लियां मन मसोसकर अपने अपने रास्ते चल दी।

इसलिए दोस्तों कहा जाता है कि हमें मिल जुल कर रहना चाहिए। नहीं तो हमारी लड़ाई का फायदा कोई तीसरा उठा लेगा और हमें हाथ कुछ नहीं लगेगा।

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