एक राज्य में एक बहुत ही प्रतापी राजा राज करता था। एक बार उसने अपने पड़ोस के राज्य पर हमला किया और उसे जीत लिया। जीत से वह राजा इतना खुश हुआ कि वह अपने मंत्रियों से सलाह मांगा कि इस जीत की खुशी के लिए क्या किया जाए?

सभी मंत्रियों ने सलाह दिया “महल के सामने चौराहे पर एक विजय स्तंभ बनवाया जाए!” राजा ने अपने राज मिस्त्री को बुलाकर से आदेश दिया कि विजय स्तंभ जल्द से जल्द बनाकर तैयार कर दो।

राज मिस्त्री ने दिन रात काम करके उस विजय स्तंभ को बना दिया। अब उस पर चुनाई का काम बाकी रह गया था। कुछ दिन बाद राज मिस्त्री ने सारे काम को खत्म करके विजय स्तंभ को तैयार कर दिया। अब बारी थी विजय स्तंभ के शुभारंभ की, राजा आया और उसने विजय स्तंभ का शुभारंभ किया।

विजय स्तंभ को देखकर राजा बहुत ही खुश हुआ क्युकी उसने जैसा सोचा था, उससे कहीं ज्यादा सुंदर विजय स्तंभ बन गया था। उसने राज मिस्त्री को बुलाकर उससे कहा-” मैं तुम्हारे कार्य से बहुत ज्यादा खुश हूं तुम्हें जो मांगना है दिल खोलकर मांग सकते हो!”

पहले तो राज मिस्त्री ने बार-बार मना किया फिर राजा के बार-बार आग्रह करने पर राजमिस्त्री ने कहा-” ठीक है महाराज! मुझे मेरी झोली में ऐसा कुछ भर कर दीजिए जिसका इस दुनिया में कोई भी मोल या कीमत ना हो!”

अब राजा सोचने लगा उसने राजमिस्त्री से कहा-” अगले दिन आकर दरबार में अपना इनाम ले लेना।” राजा ने अपने सभी मंत्रियों से इसके बारे में पूछा। मगर किसी के पास भी इसका जवाब नहीं था।

तभी राजा के एक नौकर ने कहा-” महाराज ! मुझे इसका उपाय पता है कल जब वह राजमिस्त्री आएगा , तब मैं उसे झोली भर के ऐसा सामान दूंगा जिसका दुनिया में कोई भी मोल या कीमत नहीं लगा सकता।”

अगले दिन जब राजमिस्त्री आया। तब वह नौकर उसके पास गया और उसकी झोली को फैलाकर उसका मुंह बांध दिया और उस झोली को राज मिस्त्री को दे दिया। राजमिस्त्री उसे लेकर चला गया। अब राजा ने अपने नौकर से पूछा-” तुमने उसके झोली में कुछ डाला ही नहीं?”

अब नौकर ने कहा-” जी महाराज! उसके झोली में मैंने सिर्फ हवा भर दी। क्युकी महाराज! हवा की कीमत दुनिया में कोई भी नहीं लगा सकता! इसीलिए वह राजमिस्त्री समझ गया और खाली झोली लेकर ही चला गया।”

राजा नौकर की बात को सुनकर खुश हो गया और कहा – ” सच मे ! हवा की कीमत पूरी दुनिया में कोई भी नहीं लगा सकता है।

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