बहुत पुरानी बात है एक जंगल के किनारे झील था जिसमें बहुत सारी मछलियां थी। उनमें से दो मछलियां सबसे बड़ी एवं बुद्धिमान थी। उन्हें अपनी बुद्धि पर बहुत ही ज्यादा घमंड था। उनके साथ ही एक साधारण मेंढक भी रहा करता था। वह बहुत ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं था, मगर थोड़ा बहुत समझदार था। यह सब होने के बावजूद भी वे दोनों मछली और मेंढक काफी अच्छे मित्र थे। वे हमेशा एक दूसरे का साथ देते थे, एक दूसरे का ख्याल रखते थे और संकट के समय में सभी मिलकर उसका सामना करते थे।

एक दिन जब मछुआरों का एक झुंड उस झील के किनारे से गुजर रहा था, तो मेंढक ने सुना कि वह कह रहे थे कि इस झील में बहुत सारी मछलियां है!! कल एक बड़ा सा जाल डालकर सारी मछलियों को पकड़ लिया जाएगा!!

यह सुनकर मेंढक उन दोनों बड़ी मछलियों के पास आया और उनको सारी बात बताई। मेंढक ने उन्हें झील को छोड़कर बगल वाले झील में चलने के लिए कहा।

मगर वे दोनों मछलियां मेढक से बोली-” हमारे पास इतनी बुद्धि है कि हम उन मछुआरों से बच सके। हम अपने पूर्वजों का जगह छोड़कर नहीं जाएंगे ।”

मेंढक ने काफी समझाया मगर वह मछलियां उसकी एक न सुनी। अंत में मेढ़क अपनी पत्नी के साथ उस झील को छोड़कर बगल वाली झील में चला गया।

अगले दिन मछुआरे आए और एक बड़ा सा जाल डालकर सारी मछलियों को पकड़ लिए। जिसमें वह दोनों बड़ी मछलियां भी शामिल थी जो अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझती थीं। मछुआरों ने उन दोनों बड़ी मछलियों को एक अलग थैले में रख दिया। पानी ना मिलने की वजह से थोड़ी देर बाद सारी मछलियों की मृत्यु हो गई।

जब मछुआरे सारी मछलियों को अपने कंधे पर लाद कर ले जा रहे थे, तब मेंढक उन्हें देखकर काफी दुखी हुआ और अपनी पत्नी से करने लगा। अगर यह सब हमारी बात मान लिए होते तो आज यह अपनी जान को नहीं गवाए होते।

दोस्तों! इस कहानी से हमें यही सीख मिलता है कि कभी भी हमें अपनी बुद्धि पर बहुत ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह घमंड ही हमारे विनाश का कारण बन जाती है।

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