इस कहानी की शुरुआत होती है मोहन और सोहन नाम के दो दोस्तों से। दोनों दोस्त एक ही गांव में रहते थे। एक बार वे शहर से कुछ पैसा इकट्ठा करके गांव में कुछ खेत खरीदें। उन्होंने खेती करके धन कमाने का निर्णय किया। मोहन बहुत ही मेहनती था वह दिन भर काम में खेत में काम किया करता था, वही सोहन भगवान पर भरोसा रखता था और मंदिर में बैठकर भगवान से प्रार्थना किया करता था कि उसके हिस्से का काम भगवान कर देंगे।
मोहन, सोहन की इन बातों से बहुत दुखी रहा करता था। वह चाहता था कि सोहन भी खेत में काम करें। मगर वह खेत में नहीं जाया करता था। मोहन ने दिन रात मेहनत करके खूब अच्छी फसल उगाई। फसलों के काटने का समय आ गया था। मोहन ने फसलों को कटाई करके अनाज को इकट्ठा किया।
अब दोनों फसल का बंटवारा करना चाहते थे । मोहन ने कहा कि मैंने खेत में बहुत ज्यादा काम किया है, तो मुझे फसल का ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए। जबकि सोहन ने कहा कि मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि खेत में अच्छी फसल हो, भगवान की कृपा के ही कारण खेत में ज्यादा फसल हुआ है। इसलिए फसल पर ज्यादा हक मेरा है।
इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा होने लगा और वह दोनों गांव के मुखिया के पास पहुंचे। गांव के मुखिया ने दोनों की बात सुनी। उसने मोहन और सोहन को पांच पांच किलो कंकड़ से बड़ा भरा चावल का थैला दिया और कहा- “कल इन कंकड़ को चावल से अलग करके दोनों लोग ले आओ!”
मोहन रात भर जग कर चावल से कंकड़ को अलग किया जबकि सोहन मंदिर में बैठकर भगवान से प्रार्थना करता रहा कि उसके चावल से कंकड़ अलग हो जाए। अगले दिन दोनों मुखिया के पास पहुंचे। मोहन ने अपना थैला दिखाया, उसके चावल से कंकड़ अलग हो चुके थे। अब सोहन की बारी थी, सोहन को पूरा भरोसा था कि भगवान ने उसके चावल से कंकड़ को अलग कर दिया होगा। लेकिन जैसे ही उसने थैला खोला वह चौक गया क्योंकि उसके चावल से कंकड़ अलग नहीं हुए थे। अब मुखिया ने फसल का ज्यादा हिस्सा मोहन को दे दिया। सोहन को अब समझ में आ गया था कि भगवान भी उसी का साथ देता है जो मेहनत करता है । सिर्फ उनकी पूजा करने से ही सारा काम नहीं हो जाता है। अब सोहन भी मोहन के साथ खेत में काम करने लगा और दोनों मिलकर खूब फसल उगाते और बराबर बराबर आपस में बांट लिया करते थे। दोनों अब बहुत ज्यादा खुश रहा करते थे।