एक गांव में पिंकी नाम की लड़की रहती थी। वह पढ़ी-लिखी तो बहुत थी, लेकिन भोजन की बहुत बर्बादी करती थी। वह जितना भी खाना लेती, उसका आधा खा लेती और आधा फेंक देती थी। उसकी मां उससे बहुत परेशान रहा करती थी। जब भी वह पिंकी से भोजन की बर्बादी के बारे में बात करती तब पिंकी गुस्सा के खाना पीना ही छोड़ देती थी। इसलिए उसकी मां अब पिंकी से भोजन की बर्बादी के बारे में कहना ही बंद कर दिया।

कुछ सालों बाद पिंकी की शादी हो गई । वह अपने ससुराल गई और वहां भी बेफिजूल का भोजन बर्बाद करना चालू रखा। वह अपने पति से रोज कुछ ना कुछ लाने के लिए कहती रहती थी। पिंकी की इस आदत से पिंकी की सास भी परेशान हो चुकी थी। उसकी सास ने भी उसको बहुत बार समझाया मगर पिंकी अपनी आदत से बाज नहीं आ रही थी।

एक दिन पिंकी की सास पिंकी को अपने साथ अपनी नौकरानी के घर ले गई। वहां पर पिंकी ने एक घर में देखा कि एक बच्चा खाने के लिए रो रहा था, मगर उसकी मां उसके खाने का बंदोबस्त नहीं कर पा रही थी। जिसके कारण वह रो रही थी।

जब पिंकी ने उस औरत से उसके रोने का कारण पूछा तब उस औरत ने बताया-” उसका बेटा खाने के लिए भोजन मांग रहा है मगर मेरे पास एक रोटी का सूखा टुकड़ा भी नहीं है जो मैं अपने बेटे को खाने के लिए दे सकूं।”

यह सुनकर पिंकी के पैरों तले जमीन खिसक गया। वह सोचने लगी कि “मुझे अगर भगवान भोजन दे रहे हैं तो मैं उसे बेफिजूल की ही बर्बाद करती रहती हूं! यहां इन गरीबों के पास तो खाने को एक सूखी रोटी भी नहीं है।”

जब पिंकी घर वापस लौट कर आई तब उसने अपनी सास को पूरी कहानी सुनाई । उसकी सास ने पिंकी से कहा-” बेटी! मैं इसलिए तुमको खाने की बर्बादी करने के लिए रोकती थी, मगर तुम नहीं मानती थी।”

पिंकी ने अपनी सास से वादा किया कि अब वह कभी भी भोजन की बर्बादी नहीं करेगी और हमेशा उतना ही अपनी थाली में लेगी जितना वह आसानी से खा ले।

इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें भोजन की बर्बादी नहीं करनी चाहिए। हम बहुत ही खुश नसीब हैं जो हमें समय-समय पर दो वक्त का भोजन मिल जाता है। इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो भूखे पेट ही सो जाया करते हैं उनके पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी तक नहीं होती है।

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