एक जंगल में शेर और चीता बहुत ही अच्छे मित्र थे। उनके बीच की मित्रता पूरे जंगल में प्रसिद्ध थी। शेर पूरे जंगल का राजा था। उसका मंत्री एक गीदड़ था ।

एक दिन चीता ने शेर से मजाक में कहा-” तुम भले ही जंगल के राजा हो, मगर हाथी को देखकर तुम्हारे होश उड़ जाते हैं और तुम भाग खड़े होते हो, क्योंकि हाथी बहुत ही बड़ा और बलवान होता है।”

चीता की यह बातें सुनकर शेर बहुत ही गुस्सा हुआ और उसने कहा-” आज से हमारी तुम्हारी मित्रता खत्म! अब तुम सामान्य जानवरों की तरह मेरी इज्जत करोगे।” यह सुनकर चीता शेर के पास से चला गया।

एक दिन उसके मंत्री गीदड़ ने एक खरगोश को चोरी करने के जुर्म में पकड़ कर लाया। जंगल के राजा शेर ने उसे एक महीने कैद में रखने के बाद मौत की सजा सुनाई ।

जब खरगोश जेल में बंद था तब उससे मिलने उसका मित्र लोमड़ी आया। खरगोश ने लोमड़ी से कहा-” मैं अपने अंतिम समय में अपने परिवार से मिलना चाहता हूं!”

यह बात लोमड़ी ने जंगल के राजा शेर को बताया। शेर ने कहा- “अगर तुम्हारा मित्र खरगोश भाग गया तो?”

लोमड़ी ने कहा-” खरगोश हमारा मित्र है! जब तक वह अपने परिवार से मिलकर नहीं आता उसकी जगह आप मुझे कैद में रख ले और अगर वह भाग जाता है तो उसकी जगह मुझे मौत की सजा दे दीजिएगा।”

यह सुनकर शेर सहमत हो गया। उसने लोमड़ी को जेल में बंद करा दिया।

अब खरगोश को मौत देने वाला दिन आ गया, मगर खरगोश लौट कर वापस नहीं आया। अब शेर और उसके मंत्री गीदड़ ने लोमड़ी को मौत की सजा देने के लिए बुलाया। लोमड़ी ने कहा-” ठीक है महाराज! आप मुझे सजा दे दीजिए मुझे मंजूर है ।”

तभी वहां खरगोश आ गया उसने कहा-” नहीं महाराज! मेरी गलती की सजा मेरे मित्र लोमड़ी को ना दी जाए! मैं आ गया हूं अब मुझे मौत की सजा दी जाए।”

दोनों के बीच मित्रता को देखकर शेर बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने खरगोश और लोमड़ी दोनों को रिहा कर दिया। अब उसे एहसास हो गया था कि छोटी-छोटी बातों के लिए अपनी मित्रता को नहीं तोड़ना चाहिए। यही सोचकर वह अपने मित्र चीता के पास गया और उससे अपनी गलती की माफी मांगी। अब शेर और चीता दोनों फिर से मित्र बन गए और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।

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