एक नगर में एक किसान रहा करता था। वह किसान बहुत ही गरीब था। खेती बारी करके इसी तरह वह अपने परिवार का गुजारा करता था।

एक दिन किसान बाजार से एक मुर्गी को खरीद कर ले आया। वह एक चमत्कारी मुर्गी थी जो रोज एक सोने का अंडा देती थी। सोने के अंडे को बेचकर किसान धीरे-धीरे बहुत ही धनवान हो गया। वह अपने लिए एक अच्छा सा मकान बनवा लिया और बहुत ही सारा धन इकट्ठा करके अपने पास रख लिया। क्योंकि रोज सोने का एक अंडा वह मुर्गी दिया करती थी।

एक दिन उस किसान की पत्नी ने किसान से कहा– “यह मुर्गी रोज एक सोने का अंडा देती है! इसका मतलब उसके पेट में बहुत सारे अंडे हैं! क्यों ना हम इसे मार कर इसके पेट से सारे अंडे निकाल ले, जिससे हम और भी ज्यादा धनवान हो जाए।”

किसान को अपनी पत्नी की बातें सच लगी। उसने एक दिन एक धारदार चाकू से उस मुर्गी का पेट फाड़ दिया। मगर यह क्या? उस मुर्गी के पेट में एक भी अंडा नहीं मिला। अब किसान और उसकी पत्नी अपने लालच के कारण उस मुर्गी को भी खो दिए थे, जो उनको रोज एक सोने का अंडा देती थी। दोनों बैठ कर खूब रोए। उन्हें अपनी गलती का बहुत ही ज्यादा पछतावा हो रहा था। मगर “अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत!”

इसलिए दोस्तों हमें अपने जीवन में जो भी मिले उसमें सुखी रहना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी लालच के चक्कर में हमें जो मिलता है, हम उसे भी खो देते हैं। जैसा कि उस किसान ने लालच के चक्कर में अपनी सोने की अंडे देने वाली मुर्गी को ही खो दिया।

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One thought on “सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी || the story of the golden egg laying hen ||”

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