एक जंगल में एक लोमड़ी रहा करती थी। वह एक दिन पास के तालाब पर पानी पीने गई थी। वहां पर उसे एक हंस मिला। क्योंकि लोमड़ी का कोई मित्र नहीं था। इसलिए उसने हंस को अपना मित्र बना लिया और दोनों में गहरी मित्रता हो गई।

एक दिन की बात है.. लोमड़ी ने अपने मित्र हंस को भोजन के लिए अपने घर पर निमंत्रण दिया। लोमड़ी ने खाने में स्वादिष्ट खीर को बनाया था । उसने एक सपाट तश्तरी में हंस के लिए खीर को परोस दिया और खुद एक अलग तस्तरी में लेकर खीर को चाटना शुरू कर दी। क्योंकि हंस का चोंच लंबा था, इसलिए वह सपाट तश्तरी में खीर को नहीं खा पा रहा था। उसे लोमड़ी की धूर्तता समझ में आ गई थी।

किसी तरह दो चार दाने खा कर वह हंस बोला खीर खाने में बहुत मजा आया। यह बोलकर हंस अपने घर चला गया।

कुछ दिनों के बाद उस हंस ने लोमड़ी को सबक सिखाने के लिए अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रण दिया। हंस ने अपने घर पर एक स्वादिष्ट पेय पदार्थ बनाया और उसे एक लंबी गर्दन वाली सुराही में रखकर लोमड़ी को परोस दिया और खुद भी सुराही में अपना लंबा चोंच डालकर आनंद से उसे पीने लगा। उस हंस ने स्वादिष्ट पेय पदार्थ को पीते हुए लोमड़ी से कहा– “मैंने इतना स्वादिष्ट पेय पदार्थ विशेष रूप सिर्फ तुम्हारे लिए बनाया है! शर्म मत करो और जी भर कर पियो।”

मगर यह क्या? लोमड़ी उस स्वादिष्ट पेय पदार्थ का स्वाद नहीं ले पा रही थी क्योंकि जिस सुराही में वह स्वादिष्ट पेय पदार्थ था, उसका गला बहुत ही लंबा था। पेय पदार्थ तक कुछ लोमड़ी का मुंह ही नहीं पहुंच पा रहा था ।

उस लोमड़ी को बहुत ही दुख हुआ मगर अब उसे समझ में आ गया था कि जो शरारत उसने अपने मित्र हंस के साथ की थी उसी का यह फल भुगत रही है।

इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जैसे के साथ तैसा ही करना चाहिए।

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