एक गांव में एक नीम का पेड़ था। उस पेड़ पर एक मुर्गा रहा करता था। मुर्गा दिनभर अपने भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमता रहता था और शाम को आकर उस पेड़ पर बैठ जाता था। सुबह होते ही वह जोर जोर से आवाज लगाकर गांव वालों को भी जगा दिया करता था।

एक दिन की बात है… उस पेड़ के बगल वाले रास्ते से एक लोमड़ी गुजर रही थी। उसने पेड़ पर मुर्गे को बैठा हुआ। मुर्गे को देखकर लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया। उसने सोचा कि अगर या मुर्गा मुझे मिल जाए तो कितना मजा आ जाएगा । क्युकी इसका मांस खाने में बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होगा। मुर्गे को पाने के लिए लोमड़ी के मन में एक विचार आया।

उसने मुर्गे से कहा- “अरे वो मुर्गा भाई!! तुमने सुना नहीं , जंगल के सभी जानवरों में एक समझौता हो गया है कि अब वे एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे, बल्कि मिलजुल कर रहेंगे। इसलिए तुम भी अब पेड़ से नीचे आ जाओ और हम साथ मिलकर खुशियां मनाएं और आपस में दोस्ती कर ले।”

लोमड़ी को बात को सुनकर मुर्गे को समझ में आ गया कि यह लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही है।

मुर्गे ने कहा – “ठीक है लोमड़ी बहन मैं बिल्कुल नीचे आ जाऊंगा । मगर तुम थोड़ा पीछे भी मुड़ कर देख लो गांव के सारे कुत्ते तुम्हारे पीछे दौड़े हुए आ रहे हैं!!”

यह सुनकर लोमड़ी के कान खड़े हो गए उसने हड़बड़ाते हुए स्वर में कहा- “क्या कुत्ते आ रहे हैं?”

मुर्गे ने कहा- “हां!! वह भी बहुत सारे झुंड बनाकर आ रहे है।”

यह सुनते ही लोमड़ी ने भागना चालू कर दिया।

यह देखकर मुर्गे ने कहा- “अरे लोमड़ी बहन !! भाग क्यों रही हो तुम्हीं ने तो कहा है कि सभी जानवरों में समझौता हो गया है। अब एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे।”
लोमड़ी ने मुर्गे से कहा-” लगता है अभी यह खबर कुत्तों को पता नहीं चला है अभी जान बचाकर भागने में ही भलाई है।”

लोमड़ी वहां से दुम दबाकर भाग गई । इस प्रकार से मुर्गे ने अपनी सूझबूझ और होशियारी के चलते उस चालाक लोमड़ी से अपनी जान को बचा लिया।

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