एक बार की बात है। एक दूधवाला दूध बेचने के लिए शहर जा रहा था। रास्ते में एक नदी पड़ी। उसने दूध में पानी मिलाने के लिए अपने मटके में नदी का पानी डाला। नदी के पानी के साथ उसके मटके में मेंढक भी चले गए।
दोनो मेंढक मटके से बाहर निकलना चाहते थे मगर कोई आधार ना मिलने के कारण वे निकल नही पा रहे थे। अब दोनों मेंढक काफी परेशान हो गए थे। वे उस दूध के मटकी से बाहर निकलना चाहते थे । दोनों ने बहुत ही ज्यादा प्रयास किया मगर वह बाहर निकलने में सफल नहीं हो पाए।
अंत में एक मेंढक ने हार मान कर कहा– “अरे भाई! अब तो मैं बहुत ही ज्यादा थक चुका हूं! मुझसे और कोशिश नहीं की जाएगी।”
ऐसा बोलकर उस मेंढक ने तैरना छोड़ दिया और उसी दूध में डूब कर मर गया। मगर दूसरे मेंढक ने कोशिश को जारी रखा। धीरे धीरे दूसरे मेंढक के तैरने से दूध में माखन जमा होने लगा। कुछ देर बाद एक बड़ा सा माखन का टुकड़ा बनकर तैयार हो गया । दूसरे मेंढक ने उस माखन के टुकड़े पर बैठकर छलांग लगा दिया और उस मटके से बाहर आ गया। वहीं पर दूसरे मेंढक ने हिम्मत हार कर अपनी जान को गवा दिया था।
इसलिए दोस्तों यह कहा जाता है कि भगवान भी उनकी ही मदद करता है जो हिम्मत और कठिन परिश्रम करते रहते हैं। बाकी काम चोरों और आलसी लोगों का ईश्वर कभी मदद नहीं करता।