एक गांव में एक मूर्तिकार रहा करता था। वह बहुत ही ज्यादा सुंदर मूर्तियों को बनाया करता था। उसके पास मूर्ति बनाने की प्रतिभा बहुत ही ज्यादा उपलब्धि थी। वह जिस का भी चित्र बनाना चाहता था, उसे बना दिया करता था। उस मूर्तिकार के बनाए मूर्तियों के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे।
एक दिन उसके पास उस नगर के एक राजा का आदेश आया की “उसके महल के लिए एक सुंदर सी भगवान की मूर्ति बनाया जाए!”
उस मूर्तिकार ने बड़े ही प्रेम एवं लगन से मूर्ति बनाना चालू किया और कुछ ही दिनों में भगवान की एक सुंदर मूर्ति बनाकर तैयार कर दिया। उस भगवान की मूर्ति को वह मूर्तिकार राजा के यहां पहुंचाने के लिए उसी गांव के एक सेठ से गधा किराए पर लिया। फिर उस मूर्तिकार ने गधे पर मूर्ति को रखकर राजा के दरबार की तरफ चल दिया।
रास्ते में जो भी भगवान की मूर्ति को देखता था, तो उसे झुककर प्रणाम करता था। लोगों को प्रणाम करते हुए देखकर गधे ने सोचा कि लोग उसकी प्रशंसा में उसे प्रणाम कर रहे हैं। यही सोचकर वह मूर्ख गधा अकड़ कर सड़क के बीच में खड़ा हो गया और आगे पीछे जाने से मना करने लगा।
मूर्तिकार ने गधे को बहुत ही पुचकारा और उस गधे से चलने के लिए बहुत ही प्रार्थना किया, पर गधे ने नहीं माना।
अंत में उस मूर्तिकार ने गुस्से में आकर अपने पास रखी छड़ी से उस गधे की खूब पिटाई की। छड़ी से मार खाने के बाद अब गधे का सारा घमंड चकनाचूर हो चुका था। उसका होश ठिकाने लग चुका था। अब मार खाने के बाद गधा फिर चुपचाप राजा के महल की तरफ चलने लगा।
दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि समझदारो के लिए इशारा ही काफी होता है जबकि मूर्ख लोग बिना डंडे के नहीं मानते हैं।