राजा जयसिंह एक दिन अपने महल से बाहर जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक भिखारी महल के दरवाजे से अपनी पीठ रगड़ रहा है। भिखारी को ऐसा करते देख राजा जयसिंह ने अपने सिपाहियों को उसे पकड़ने का आदेश दिया और उसे राज दरबार में पेश किया गया। दरबार में राजा ने उस भिखारी से पूछा–” तुम महल के दरवाजे से अपना पीठ क्यों रगड़ रहे थे??”
उस भिखारी ने डरते हुए जवाब दिया– “महाराज !! मेरे पीठ में बहुत ही तेज खुजली हो रही थी और मेरा हाथ वहां तक नहीं पहुंच पा रहा था। इसलिए मैंने दरवाजे पर अपना पीठ रगड़ा।”
राजा जयसिंह ने भिखारी की बात को सुनकर अपने मंत्री को आदेश दिया “इस भिखारी को पचास सोने की मुद्राएं दी जाए।”
यह खबर जल्द ही पूरे राज्य में फैल गई। कुछ दिन बाद राजा मानसिंह अपने महल से बाहर जा रहे थे, तो उन्होंने दो भिखारियों को महल के दरवाजे से पीठ पकड़ते हुए देखा। उन्होंने दोनों भिखारियों को दरबार में पेश किया और पूछा– “तुम दोनों दरवाजे से अपना पीठ क्यों रगड़ रहे थे??”
दोनों भिखारियों ने जवाब दिया– “महाराज हमारे पीठ में बहुत तेज खुजली हो रही थी! इसलिए हम अपना पीठ दरवाजे में रगड़ रहे थे!”
यह सुनकर राजा मानसिंह को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ गया। उन्होंने अपने सिपाहियों से उन दोनों भिखारियों को पचास कोड़े मारने के आदेश दिए।
यह सुनकर एक भिखारी बोल–” महाराज! जब पहले भिखारी ने अपनी पीठ को दरवाजे से रखना था तो आपने उसे पचास सोने की मुद्रा दिए! मगर हमें दंड क्यों दे रहे हैं?”
यह सुनकर राजा मानसिंह ने कहा– “वह भिखारी अकेला था और अपनी पीठ नहीं खुजला जा पा रहा था। तुम दोनों अगर चाहते तो एक दूसरे का पीठ खुजला देते मगर तुम दोनों यहां पर सिर्फ लालचवश आए हो!”
दोनों भिखारियों को पचास कोड़े मारे गए और उन्हें राज्य से भागा दिया गया। अब वह बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा थे और कभी भी ऐसा लालच ना करने की कसम खाई।