सुंदरवन जंगल में एक शेर रहा करता था। वह जंगल का राजा था। एक दिन वह शिकार पर निकला । रास्ते में उसने देखा की एक राजा हाथी के ऊपर सवार होकर जा रहा है। हाथी के ऊपर एक बड़ा सा सिंहासन बना था, जिस पर वह राजा आराम से बैठा हुआ था।

अब शेर ने सोचा “मैं भी तो जंगल का राजा हूं, तो मैं भी अब पैदल नहीं चलूंगा! मैं भी हाथी की सवारी करूंगा।”

यही सोचकर वह वापस जंगल में आया और सारे जानवरों को बुलाकर उनसे अपनी बात कही। सभी जानवर मान गए और एक हाथी को बुलाकर उसके पीठ पर सिंहासन को तैयार कर दिए। अब सिंहासन तैयार हो चुका था सिर्फ शेर के बैठने की देरी थी। सभी जानवरों ने शेर को बुलाकर लाया और उसे सिंहासन पर बैठने के लिए कहा।

शेर छलांग लगाकर हाथी के ऊपर बने सिंहासन पर बैठ गया। हाथी खड़ा होकर चलने ही वाली थी कि अचानक सिंहासन जोर से हिलने लगा और शेर का संतुलन बिगड़ गया। संतुलन बिगड़ते ही शेर, हाथी के पीठ पर बने सिंहासन से सीधे जमीन पर गिरा। शेर के कई दांत टूट गए और मुंह से खून निकलने लगा। यह देख कर सारे जानवर हंसने लगे।

शेर को अब समझ में आ गया था कि सिंहासन पर बैठना उसके बस की बात नहीं है। उसने सभी जानवरों से कहा– “इससे अच्छा तो मैं पैदल ही चल लेता हूं!” इस प्रकार से शेर ने हाथी के ऊपर चलने की जगह पैदल चलना उचित समझा।

दोस्तों इसीलिए कहा जाता है “जिसका काम उसी को साजे” अर्थात हमें नकल नहीं करना चाहिए! जो हमारे बस की हो वही करना चाहिए। नकल का परिणाम बहुत ही कष्टदायक होता है।

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