एक गांव में एक रामू नाम का मछुआरा रहा करता था। वह मछलियों को बेचकर अपना जीवन यापन किया करता था। एक दिन जब वह तालाब में मछलियां पकड़ रहा था तो अचानक उसका जाल फट गया और सारी मछलियां उसके जाल से निकल गई। यह देखकर रामू काफी उदास हो गया । उस दिन रामू को एक भी मछली नहीं मिली। उदास होकर जब वह घर पहुंचा तो उसकी बीवी ने पूछा- आज बाजार से सब्जियां क्यों नहीं लाए?
रामू ने जवाब दिया- आज मछलियां पकड़ते वक्त जाल फट गया और एक भी मछली हाथ नहीं लगी।
यह सुनकर उसकी बीवी जोर-जोर से चिल्ला कर उसे ताने मारने लगी कि मैं रोज रोज भूखे पेट नहीं रह सकती अगर तुम कल बाजार से सब्जियां लेकर नहीं आए तो मैं अपने मायके चली जाऊंगी। यह सुनकर रामू और उदास हो गया।
अगले दिन उसने घर में रखे एक कांटे को लेकर मछली पकड़ने चला गया। सुबह से लेकर शाम हो गई लेकिन उसके कांटे में एक भी मछली नहीं फसी। दिन ढलने को आया था, तभी उसके कांटे में एक मछली फंस गई। यह देख कर रामू बहुत ही खुश हुआ और उसे बाजार में बेचने के लिए ले जाने लगा । रास्ते में उसे एक बूढ़ी औरत दिखी, वह भूख के मारे तड़प रही थीं।
रामू के हाथ में मछली देखकर बूढ़ी औरत ने उससे बोला – बेटा अगर यह मछली तुम मुझे दे देते तो मैं इसे पका कर खा लेती और मेरा भूख खत्म हो जाता। यह सुनकर रामू को दया आ गया और उसने मछली को उस बूढ़ी औरत को दे दिया।
मछली के बदले उस बूढ़ी औरत ने रामू को एक छोटा सा पौधा दिया । पौधे को लेकर जब रामू घर पहुंचा तो उसकी बीवी ने फिर पूछा – आज बाजार से सब्जियां लेकर क्यों नहीं आए?
तो रामू ने सब कुछ अपनी बीवी को बताया। यह सारी बातें सुनकर उसकी बीवी गुस्से से लाल पीला होने लगी और बोली कल सुबह मैं अपने मायके चली जाऊंगी तुम्हारे साथ अब मैं नहीं रह पाऊंगी। ये बोलकर वह सोने चली गई ।
रामू ने रात को ही उस पौधे को अपने आंगन में लगा दिया और सो गया। सुबह जब रामू उठा तो वह पानी देने के लिए पौधे के पास गया। पौधे के पास जाते ही उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा क्योंकि पौधा बड़ा भी हो गया था और पूरा सोने का भी हो गया था। सोने का पौधा देखकर रामू जोर से चिल्लाया- अरे सुनती हो! यह देखो ! उसकी पत्नी आई और सोने का पौधा देखकर काफी खुश हो गई। रामू और उसकी बीवी ने मन ही मन उस बूढ़ी औरत का शुक्रिया किया और उस सोने के पौधे को बाजार में बेचकर शान और शोरहत से अपनी जिंदगी बिताने लगे।

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