अभय अपने माता पिता के साथ एक छोटे से शहर में रहता था। वह एक कंपनी में काम करता था, जिसके पैसों से वह अपना खर्चा और अपने परिवार का खर्चा चलाता था ।

कुछ वर्ष बाद अभय की शादी हो गई। उसकी पत्नी का नाम स्नेहा था। स्नेहा एक बहुत ही लालची किस्म की औरत थी। स्नेहा को जब भी पैसे मिलते थे, तो वह तरह-तरह के कपड़े और गहने खरीद लेती थी। वह जब भी किसी समारोह में जाती थी तो हमेशा नए नए कपड़े और गहने पहनकर जाना चाहती थी। जब उसके पास नए कपड़े और नए गहने नहीं रहते थे, तब वह अपने पति अभय से जिद करके खरीदवा लेती थी। उसकी लालच से उसका पति भी तंग आ गया था ।

अभय, स्नेहा को हमेशा समझाया करता था कि हमारी कमाई उतनी नहीं है कि मैं तुमको हर समारोह में जाने के लिए अलग-अलग तरह के कपड़े और गहने खरीद कर लाऊं। मगर स्नेहा उनकी बातों को मानने के लिए तैयार ही नहीं होती थी।

एक दिन जब स्नेहा किसी समारोह में गई थी, तब उसकी एक सहेली सुष्मिता उसके घर पर आई। सुष्मिता ने स्नेहा की सास से उसके बारे में पूछा। स्नेहा की सास ने सुष्मिता को सारी कहानी बताई। सुष्मिता ने अब स्नेहा को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाया।

वह स्नेहा के घर से सारा राशन लेकर चली गई और राशन के डिब्बों में अपने गाने ला कर भर दी। जब स्नेहा समारोह से वापस आई तब वह किचन के डिब्बों में गहने देखकर बहुत खुश हुई।

शाम हुआ, जब स्नेहा खाना बनाने गई तो उसे राशन नहीं मिला। तब वह अपनी सास से पूछी -” सारा राशन कहां गया?”

उसकी सास ने जवाब दिया-” मैंने सारा राशन और घर का सामान बेचकर तुम्हारे लिए गहने और कपड़े खरीद दिया, तुम बदल बदल कर उसे पहनो।”

स्नेहा बोली-” मगर खाने के बिना मै गहनों और कपड़ों का क्या करूंगी?”

तभी उसकी सहेली सुष्मिता आई और उसने स्नेहा को सब कुछ बताया कि यह तुमको सबक सिखाने के लिए किया गया था। अब स्नेहा को समझ में आ गया जीवन जीने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी भोजन होता है ना कि बदल बदल के गहने और कपड़े पहनना। स्नेहा अब अपने पति के कमाई के अनुसार ही सारा काम करती थी और वह खुशी-खुशी रहने लगी।

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