एक राजा के दरबार में मदन नाम का एक मंत्री था । राजा के महामंत्री से बहुत ही ज्यादा द्वेष रखता था, क्योंकि महामंत्री ने तीन चार बार मदन मंत्री का अपमान भरी सभा में कर दिया था। इसलिए वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए हमेशा उपाय सोचता रहता था। उस राज्य का राज पंडित भी महामंत्री से बहुत जलता था, इसलिए मंत्री मदन और राज पंडित की गहरी मित्रता हो गई। यह दोनों मिलकर हमेशा महामंत्री की बुराई करते रहते थे।

मदन मंत्री और राज पंडित ने मिलकर महामंत्री को सजा दिलवाने के लिए एक दिन राजा से जाकर बोले-” महाराज! जो आपका महामंत्री है, वह आपको बहुत ही मूर्ख बनाता है। जनता के बीच में जाकर वह आपकी बुराइयां करता है और आप के प्रति लोगों को भड़काता रहता है।”

मंत्री और राज पंडित की यह बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित रह गया। मगर दोनों लोगों की बातों को सुनने के बाद राजा के मन में संदेह आया। उसने महामंत्री से भरी बस सेवा में पूछा-” क्या तुम मेरी जनता में बुराई करते हो और मेरे प्रति लोगों को भड़काते हो? ऐसा शिकायत सुनने में आया है।”

महामंत्री ने कहा-” महाराज! इसका उत्तर देने के लिए मुझे कुछ वक्त चाहिए।”

राजा ने कहा-” ठीक है जब तक तुम उत्तर नहीं देते हो तब तक तुम राजदरबार से बाहर रहोगे।”

एक दिन की बात है महामंत्री राजा को लेकर मदन मंत्री के घर पहुंचा। वहां पर मदन मंत्री और राज्य पंडित आपस में बातें कर रहे थे की ‘अब महामंत्री को राजा दरबार से निकाल देगा क्योंकि वह हमारी बातों में विश्वास कर लिया है। अब हम महामंत्री से अपना बदला ले लेंगे।’

इतना सुनते ही राजा आग बबूला हो गया। उसने मदन मंत्री और मदन पंडित को राज्य पंडित को अपनी महामंत्री से सबक सिखाने के लिए कहा।

महामंत्री ने एक दिन अपने घर पर भोज के लिए सभी को आमंत्रित किया। महामंत्री ने अपने बगल में राजपंडित को बैठाया और उसके कान में कुछ फुसफुसा कर बोला।

अगले दिन मदन मंत्री ने राज पंडित से पूछा- “तुम्हारे कान में महामंत्री ने क्या गुप्त बात बोला है ?”

राज पंडित ने कहा-” महामंत्री ने उसके कान में कोई गुप्त बात नहीं बोला।”

तब मंत्री ने कहा- पंडित जी ! आप हमसे झूठ बोल रहे हैं। मैं आपको सब कुछ बताता हूं मगर आप मुझसे वह गुप्त बात छुपा रहे हैं। आज के बाद आप हमसे बात मत कीजिएगा।”

इस प्रकार से मदन मंत्री और राज पंडित दोनों अलग रहने लगे और दूसरों की बुराइयां करना छोड़ दिए।

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