एक बार की बात है एक राजा की सभा में एक महामंत्री बैठे-बैठे झपकी ले रहा था। राजा ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया और उससे कहा-” महामंत्री तुम्हें शर्म नहीं आती! तुम भरी सभा में बैठकर झपकी ले रहे हो। तुम सभा को अपना घर समझ लिए हो। मैं तुम्हें दो महीने के लिए दरबार से बाहर रहने के लिए सजा देता हूं!”
राजा की बात सुनकर महामंत्री चुपचाप वहां से चला गया । दरबार में बैठे सभी सदस्यों ने कहा – “महामंत्री कितना बेशर्म इंसान है वह बिना कुछ कहे इतना घमंड से भरे दरबार से चला गया, उसने आपका अपमान किया महाराज!” राजा ने भी इस बात पर सहमति जताई।
महामंत्री को गए कुछ महीने बीत गए। एक दिन राजा के दरबार में एक मुनि का लड़का आया , उसने कहा-” महाराज आप के महामंत्री दरबार से जाने के बाद मेरे पिता के आश्रम में शरण लिए थे। एक दिन जब वह नदी पर स्नान करने गए थे तो अचानक उनका पैर फिसल गया और वह नदी में डूब कर मर गए।”
ऐसा सुनते ही राजा एकदम उदास हो गया। वह उस बच्चे के साथ उस मुनि के आश्रम में गया, जहां पर महामंत्री ने शरण लिया था। आश्रम में पहुंचकर राजा ने देखा कि एक मुनि ध्यान मग्न होकर बैठे हैं। राजा ने मुनि से कहा -” मुनि देव! क्या मुझे महामंत्री जहां पर फैसला था वहां पर ले जा सकते हैं क्या?”
तब उस मुनि ने कहा-” आपने तो उस महामंत्री को अपने दरबार से निकाल दिया था, तो उसके लिए इतना परेशान क्यों हो रहे हैं?”
राजा ने जवाब दिया-” मुनि देव! मैंने गलती से अपने उस अच्छे महामंत्री को अपने दरबार से निकाल दिया था! मैं अपनी गलती के लिए उस महामंत्री से माफी मांगना चाहता हूं!”
मुनि ने कहा-” ठीक है! मैं तुमसे तुमको महामंत्री से मिलवा देता हूं। तुम उसे मिलकर ही माफी मांग लेना। महामंत्री से मिलने के लिए तुमको अपनी आंखें बंद करनी पड़ेगी।”
राजा ने अपनी आंखें बंद कर ली। कुछ देर बाद मुनि ने कहा-” अपनी आंखे खोलो! देखो महामंत्री तुम्हारे सामने हैं।”
राजा ने जब आंखें खोलो तब महामंत्री उसके सामने खड़ा था। राजा आश्चर्यचकित रह गया। तब मुनि ने कहा-” मैंने नाटक किया था। मै ही महामंत्री हूं! मैं मरा नहीं था महाराज ! मैं बस यही जानना चाहता था कि आप मुझसे इतना प्रेम करते हैं।”
महामंत्री को अपने सामने देखकर राजा ने उसे गले लगा लिया और राज्य से निकालने के लिए उससे माफी मांगी और उसे लेकर अपने दरबार में चला गया।