बहुत समय पहले की बात है एक राजा था और उसकी तीन पत्निया थी | राजा अपनी पहली पत्नी से बहुत प्यार करता था , वह अपनी दूसरी पत्नी को एक दोस्त की तरह मानता था और जब भी उसको कोई परेसानी होती थी तो वह अपनी पहली पत्नी से सुझाव लेता था | राजा अपनी तीसरी पत्नी से प्यार नहीं करता था लेकिन उसकी तीसरी पत्नी उसको बहुत प्यार करती थी | राजा हमेसा अपने कामो मे बहुत ही बिजी रहता था |
एक दिन राजा की तबियत बहुत ही खराब हो गयी और उसके बचने की बहुत ही कम उम्मीद रह गयी | राजा की एक इच्छा थी की वह अकेले नहीं मरना चाहता था | उसने अपनी पहली पत्नी को बुलाया और बोला तुम मेरे साथ ऊपर भगवान के पास चलो , यह सुनकर वह बोली मे आप के साथ नहीं जाउंगी | मे अभी जीना चाहती हु |
उसके बाद राजा ने अपनी दूसरी पत्नी को याद किया , जब उसने सुना की उसके पति उसको अपने साथ ले जाना चाहते है तो वह उनसे जाकर बोली – मे अभी जवान हु , में आप के साथ नहीं जाउंगी और आप के मर जाने के बाद में दूसरी शादी कर लूंगी | यह सुनकर राजा बहुत ही दुखी हुवा और मन ही मन बहुत उद्दास हो गया और अपनी तीसरी पत्नी को तो बुलाया ही नहीं | वह सोच ही रहा था की उसकी तीसरी पत्नी खुद चलकर आ गयी और बोली में आप के साथ चलूंगी |
उसकी बात सुनकर राजा बहुत ही खुश हुवा , लेकिन फिर बहुत ही निराश हो गया और बोला मैंने पूरी जिन्दगी तुम को प्यार नहीं किया और आज तुम ने मेरे साथ चलने का वचन दे दिया | में अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाउँगा ऐसा राजा ने कहा | इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की प्यार उससे करो जो आप को प्यार करता हो , उससे नहीं जिससे आप करते हो |