हरितालिका तीज व्रत कथा
हरितालिका तीज का व्रत पूर्ण रूप से भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है कैसे माता पार्वती ने तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में मांग लिया था , इस व्रत में माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ी कथा में भी इसी का जिक्र है | तो आइये जानते है कैसे माता पार्वती ने इस व्रत को करके शिव जी को पति के रूप में कैसे प्राप्त किया |
भगवान शिवजी ने पार्वती माता जी को उनके पूर्व जन्म को याद दिलाने के लिए ये कथा सुनाई थी| हरितालिका तीज की कथा इस प्रकार है ,
शिव जी कहते है पार्वती तुमने मुझे वर के रूप में पाने के लिए हिमालय पर जा कर घोर तपस्या किया था ,इस दौरान तुम अन्य जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था | किसी भी मौसम की परवाह किये बिना तुमने लगातार तप किया , तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत ही चिंतन हुए, ऐसी स्थिति में एक दिन नारद जी तुम्हारे घर जा पहुंचे , जब तुम्हारे पिता जी उनके आने का कारण पूछे तो नारद जी ने कहा की भगवान विष्णु जी आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते है पार्वती जी की घोर तपस्या देखकर विष्णु जी पार्वती जी से विवाह करना चाहते है इस बारे में आपकी क्या राय है , नारदा जी की बात सुनकर पर्वतराज बहुत ही प्रसन्नता के साथ बोले नारदा जी यदि भगवान विष्णु मेरी पुत्री से विवाह करना चाहते है तो इससे बड़ी बात कुछ हो ही नहीं सकती इस विवाह के लिए मैं तैयार हूँ ,तुम्हारे पिता जी की स्वीकृति पाकर नारद जी वह से चले गए और यह शुभ समाचार विष्णु भगवान को सुनाया लेकिन जब तुम्हे यह बात पता चली तुम बहुत दुखी हुई तुम मुझे यानि कैलाशपति को अपना पति मान चुकी थी , और तुमने अपने मन की बात अपने सखी से कही तुम्हारी सखी ने सुझाव दिया की वो तुम्हे
एक घनघोर वन में छुपा देगी और तुम वह रहकर शिव जी को प्राप्त करने की साधना करना इसके बाद तुम्हारे पिता जी तुम्हे घर न पाकर बहुत दुखी हुए वह सोचने लगे यदि विष्णु जी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर नहीं मिली तो क्या होगा और तुम्हे खोजने के लिए धरती और पाताल एक करवा दिए ,लेकिन तुम नहीं मिला तुम वन में एक गुफा के अंदर मेरी आराधना में लीन थी भाद्र पद तृतीया शुक्ल को तुमने रेत से शिवलिंग तैयार कर मेरी आराधना की जिससे मै प्रसन्ना होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूरी की इसके बाद तुमने अपने पिता जी से कहा मैंने अपने जीवन का लम्बा समय शिव जी की तपस्या में बिताया है ,और भगवान शिव जी मेरी तपस्या से प्रसन्ना होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है | मैं घर पर एक ही शर्त पर चलूँगी कि आप मेरा विवाह शिवजी के साथ करेंगे और तुम्हारे पिता जी इस बात के लिए मान गए और तुम्हे घर वापस ले गए कुछ समय बाद उन्होंने पूरी विधि विधान से विवाह किया
भगवान शिव ने इसके बाद कहा कि , पार्वती जो तुमने तृतीया को मेरी आराधना करके जो व्रत किया था उसी के परिणामस्वरुप हम दोनों का विवाह सम्भव हो सका इस व्रत का यह महत्व है जो इस व्रत को पुरे निष्ठां से करेगा उस स्त्री की मनोकामना पूर्ण होगी और तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा |
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