एक नगर में दो मित्र रहा करते थे। एक का नाम राधे और दूसरे का नाम श्याम था। दोनों बहुत ही बहादुर थे। उस नगर का राजा बहुत ही अन्याय था। उसके अन्याय को देखते हुए राधे ने उसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। जब राधे के विरोध की खबर वहां के राजा को हुई तो उस वह बहुत ही क्रोधित हुआ, और राधे को दरबार में बुलाकर उसे फांसी की सजा सुना दिया।
राधे ने राजा से कहा- महाराज! आप जो कर रहे हैं, बिल्कुल ठीक कर रहे हैं। मैं फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूं मगर फांसी से पहले मैं चाहता हूं कि अपने बीवी और बच्चों से मिल लू।
राजा ने साफ इंकार कर दिया और कहा- तुम अपने बीबी बच्चो से मिलने के बहाने फरार हो गए तो ? इसलिए मैं तुमको उनसे मिलने नहीं दे सकता।
वहीं पर खड़े श्याम ने कहा- महाराज! यदि राधे समय से वापस नहीं आया तो उसकी जगह मुझे फांसी दे दी जाए। परंतु उसे अपने बीवी बच्चों से मिलने दिया जाए।
राजा भी मान गया और राधे अपने परिवार से मिलने घर चला गया। जब राधे अपने परिवार से मिल कर वापस आ रहा था तो रास्ते में आते समय उसका घोड़ा जख्मी हो गया और वह समय से आ नहीं पाया। शर्त के अनुसार अब श्याम को फांसी देनी थी और इसकी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी।
उसे फांसी पर लटकाया जाना बाकी था। तब तक राधे वहां पर पहुंचा और बोला आप श्याम को फांसी नहीं लटका सकते क्युकी गलती तो मैंने किया है। तो मुझे ही फांसी लगना चाहिए।
फांसी के तख्त से श्याम बोला- महाराज ! जैसा तय हुआ था कि तय समय के अंदर राधे नहीं आया। इसलिए फांसी मुझे ही होनी चाहिए। दोनों की ऐसी घनिष्ठ मित्रता को देखकर राजा का हृदय द्रवित हो उठा। उसने दोनों को पास में बुलाया और उनको फांसी से मुक्त कर दिया। अब राजा अपने किसी भी प्रजा को इतना कठोर दंड नहीं देता था और प्रजा की समस्या को समझने लगा। प्रजा के हित में काम करने लगा और खुशी-खुशी राज करने लगा।
Sap aur tote ki kahani Punjabi me