एक बढ़ाई दिन भर अपने दुकान पर काम किया और शाम को दुकान में ताला बंद करके अपने घर चला गया। जब बढ़ाई दुकान को बंद करके अपने घर जाने लगा, तब एक सांप उसके दुकान में घुस गया। वह सांप बहुत ही ज्यादा गुस्सैल था। उसे अपने बल और गुस्से पर बहुत ज्यादा घमंड था।
दुकान के अंदर सांप इधर रेंग रहा था, अचानक वह मेज पर रखी हुई एक कुल्हाड़ी से टकरा गया। टकराने के बाद सांप को बहुत ज्यादा गुस्सा आया। सांप ने अपने अपमान का बदलना लेने के लिए अपने दांत से कुल्हाड़ी पर कई वार किया, मगर लोहे की बनी कुल्हाड़ी टस से मस नहीं हुई। बल्कि सांप के ही बहुत सारे दांत टूट गए।
दांत टूटने से सांप को और तेजी से गुस्सा आया और उसने कुल्हाड़ी को लपेट कर उसे तोड़ना चाहा, मगर कुल्हाड़ी को लपेटकर जैसे ही सांप ने कसना चालू किया वैसे ही कुल्हाड़ी की धार से उसका शरीर कटने लगा । मगर अहंकार और गुस्से में लीन सांप और कसता गया और उसका शरीर कटता चला गया। अंत में सांप का शरीर पूरी तरह कट गया और वह सांप वहीं पर मर गया।
अपने गुस्से की वजह से सांप अब मर चुका था। सुबह जब बढ़ई दुकान खोला तो उसने सांप को मरा हुआ पाया। उसने एक डंडे से सांप को उठाकर बगल के ही एक कचरे के ढेर पर फेंक दिया। इस प्रकार से सांप अपने गुस्से की वजह से मर भी चुका था और उसके मरे हुए शरीर को गंदे स्थान पर फेंक दिया भी गया था।
इसलिए दोस्तों कहा जाता है कि गुस्सा इंसान को खा जाता है । इसलिए हमें बेमतलब का गुस्सा नहीं करना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी अपना गुस्सा ही अपने आप को नुकसान पहुंचाते चला जाता है और हमें पता तक नहीं चलता है और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।