डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के प्रथम राष्ट्पति थे | एक बार कई राजयो का दौरा करते हुए वह बिहार पहुंचे तो उनके पैरो मे दरद होने लगा | दरद का कारण जानने पर पता चला की उनके जूतों के तले बहुत घिस गए थे | इसी कारण किले उभरकर पैरो मे लगातार चुभ रहे थे | इसी से उनके पैरो मे दरद हो रहा था |
अहिंसक चरमलय् उनके केन्दर से दस मील दूर था | उनके सचिव केन्दर पर पहुंच कर एक जोड़ी जूते लेकर आये | जूते पहनते वकत् प्रसाद जी ने इसकी कीमत पूछा तो उत्तर मिला- बीश रुपया |
राजेंद्र जी विचार मे पड गए और बोले – गत वरष तो मैंने ऐसे जूते दस रुपया मे खरीदा था | उनकी बात सुनकर सचिव बोल वो वहाँ पर भी है लेकिन हलके है और यह जूता उस से मुलायम भी है |
राष्ट्रपति जी बहुत नाराज होकर बोले – जब दस रुपये के जूतों से काम चल सकता है तब बीश रुपया क्यों खर्च किया जाये और फिर मेरे पैर तो कठोर जूतों के आदी है | सचिव , राजेंद्र बाबू के स्वभाव से बिलकुल परिचित था और फ़ौरन जूतों को बदलने को जाने लगा , उसको जाता देख राजेंद्र जी ने पूछा कहा जा रहे हो , उसने बोल आप के जूते बदलने – सचिव ने बोला | इतनी दूर तुम जावोगे कैसे , मोटर से सचिव ने बोला |
नहीं आप रहे दीजिये मे आते – जाते किसी और से बदलवा लूंगा , नहीं तो आप जितने का जूता नहीं है उससे जादा पेट्रोल खरच कर दोगे | यह सुनकर सचिव दांग रह गया |
आज कल के नेता ऐसा क्यों नहीं करते है अपनी राय कमेंट बॉक्स मे जरूर लिखे |