इस कहानी की शुरुआत होती है दिनेश और श्याम से। दोनों एक साथ कॉलेज में पढ़े, हॉस्टल में एक ही साथ रहे। दिनेश और श्याम में काफी गहरी दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे का साथ हमेशा देते थे। उनकी मित्रता की मिसाल पूरे कॉलेज के बच्चे देते थे।

अपने कॉलेज में पढ़ाई पूरा करके दोनों दोस्त सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए दिल्ली गए। दोनों ने खूब मन लगाकर पढ़ाई किया और सरकारी नौकरी की परीक्षा दी। परीक्षा का परिणाम आया तो उसमें दिनेश सफल हो गया था मगर श्याम सफल नहीं हो पाया था।

कुछ कुछ दिन पश्चात दिनेश ने दिल्ली में ही सरकारी नौकरी को ज्वाइन कर लिया । धीरे-धीरे दिनेश अपनी नौकरी मैं व्यस्त होता चला गया। कुछ समय पश्चात जब श्याम की नौकरी नहीं लगी तो दिनेश ने भी उस पर ध्यान देना बंद कर दिया और अपनी दुनिया में मस्त रहने लगा। इस बात का श्याम को बहुत दुख था कि उसका परम मित्र अब उससे सही से बात तक नहीं करता।

एक दिन शाम को जब श्याम बाजार में सब्जियां लेने जा रहा था, तो उसने देखा कि रास्ते के एक तरफ बहुत भीड़ इकट्ठी हुई है। श्याम भी भीड़ की तरफ गया । वहां पर एक व्यक्ति बहुत ही बुरी तरह से घायल पड़ा हुआ था। देखने से ऐसा लग रहा था की बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ हो, मगर उस व्यक्ति की कोई मदद नहीं कर रहा था। उस व्यक्ति के शरीर से अनियंत्रित रूप से खून बह रहा था। श्याम ने उस व्यक्ति के पास जाकर देखा तो वह हैरान रह गया क्योंकि वह व्यक्ति दिनेश था। उसने दिनेश को तुरंत अपनी गोद में उठाया और बिना किसी देरी के पास के एक अस्पताल में ले जाकर भर्ती कर दिया। कुछ दिनों बाद जब दिनेश को होश आया तो डॉक्टरों ने उसे बताया कि अगर आपको अस्पताल आने में थोड़ी देर हो जाती तो हम लोग आप को नहीं बचा पाते। अस्पताल में ही उसे पता चला किस की उसका दोस्त श्याम ही उसे अस्पताल लेकर आया था। अस्पताल से ठीक होकर दिनेश श्याम से मिलने उसके पास गया और उससे अपने घमंड के लिए माफी मांगी और जान बचाने के लिए धन्यवाद का कहा। उसने श्याम को पढ़ाई में तब तक मदद करने का वादा किया जब तक की वह भी किसी सरकारी नौकरी को ना पा जाता।

कुछ महीने बाद श्याम की भी नौकरी लग गई अब दोनों दोस्त पहले की तरह खुशी खुशी एक दूसरे के साथ रहने लगे एवं हर सुख एवं दुख में एक दूसरे का सहयोग करने लगे।

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