किसी जंगल में एक शिकारी रहा करता था। वह प्रतिदिन जंगल में जाकर अनेक जानवरों का शिकार किया करता था और उन्हें बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण किया करता था।

एक दिन वह शिकारी जंगल में शिकार करने गया मगर उसके हाथ कोई भी शिकार नहीं लगा। शाम को जब वह घर वापस जा रहा था तो रास्ते में उसे एक भालू दिखाई दिया। उसने अपनी तीर से भालू पर हमला कर दिया। तीर जाकर भालू के पेट में घुस गया। भालू तेजी से चिल्लाने लगा और शिकारी की तरफ जोर से झपटा और उसे पकड़ कर मार डाला और खुद भी बगल में गिर कर मर गया।

कुछ देर बाद वहां से एक गीदड़ गुजर रहा था। उसने भालू और शिकारी को मारा हुए देखकर बहुत ही खुश हुआ और मन ही मन सोचने लगा कि अब तो पूरे महीने भर के खाने का बंदोबस्त हो गया है । लेकिन पहले मैं भालू को खाऊं या शिकारी को?

काफी देर सोचने के बाद उस गीदड़ ने लालच वश सबसे पहले चमड़े से बनी धनुष की डोरी को खाने का निर्णय लिया। जैसे ही वह चमड़े से बनी डोरी को खाने लगा धनुष झटक करके उसके जबड़े में घुस गया। अब गीदड़ जोर-जोर से कराहने लगा। मगर धनुष का सिरा उसके गले में बुरी तरह फंस चुका था। कुछ देर बाद गीदड़ भी तड़प तड़प के वहीं पर अपना दम तोड़ दिया।

इसलिए दोस्तों कहा जाता है कि बहुत ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। क्योंकि लालच का फल हमेशा बुरा ही होता है।

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