इस कहानी की शुरुआत होती है एक “टोपीवाले” से जो शहर से टोपियां खरीद कर गांव गांव जाकर उनको बेचता था। उसके टोपी बेचने की कला बहुत ही मजेदार थी। वह टोपीवाला बड़े ही सुर में टोपी ले लो! टोपी ले लो! कहकर बोलता था। उसकी आवाज सुनकर अत्यधिक लोग उससे टोपी खरीदा करते थे।
एक दिन की बात है….. जब टोपी वाला टोपीया खरीद कर शहर से गांव में बेचने के लिए ले जा रहा था। गर्मी का दिन था और बहुत ही तेज धूप हुआ था। टोपीवाला बहुत थक भी चुका था। सड़क के किनारे एक बहुत ही विशाल पेड़ था। उसी के नीचे टोपी वाले ने विश्राम करने की योजना बनाई और अपना टोपी से भरा झोला रखकर आराम करने लगा। आराम करते करते उसकी आंख लग गई और वह सो गया।
उसी पेड़ पर बहुत सारे बंदर थे। वे सभी बहुत ही ज्यादा शैतान और नकलची बंदर थे। टोपीवाले को सोता हुआ देखकर वे नीचे उतरे और उसके झोले को खोलकर सारी टोपिया लेकर पेड़ पर चढ़ गए और एक एक करके सब बंदरों ने पहन लिए। अब सारे बंदर टोपी पहनकर खेलने लगे और जोर-जोर से तालियां बजाने लगे। उनकी तालियों की आवाज सुनकर टोपी वाला नींद से उठा! तो उसने देखा कि उसकी सारी टोपियां बंदर ले जाकर खेल रहे हैं ।
टोपी वाले के मन में एक विचार आया। उसने सभी बंदरों को आवाज दी और अपनी टोपी निकालकर दूर फेंक दिया। उसे टोपी निकाल कर फेकता देख, नकलची बंदरों ने भी अपनी अपनी टोपी निकाल कर फेंक दि।
टोपी वाले ने सभी टोपी को इकट्ठा किया और अपने रास्ते चल दिया। इस तरह से अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर उस टोपीवाले ने उन बदमाश बंदरों से अपनी टोपी वापस ले ली।