किसी नगर में एक पंडित और पंडिताइन रहती थी। पंडिताइन ने एक नेवला पाल रखा था।वह नेवले से बहुत प्यार करती थी और नेवला भी स्वतंत्र रूप से पूरे घर में खेला करता था।
एक दिन भगवान की कृपा से पंडिताइन को एक बेटा पैदा हुआ। पंडित ने पंडिताइन से कहा- अब इस नेवले को घर से निकाल देना चाहिए! नहीं तो यह हमारे बच्चे के लिए खतरा बन सकता है!
मगर पंडिताइन नेवले से बहुत प्यार करती थी इसलिए उन्होंने उसे घर से नहीं निकाला। अब नेवला भी छोटे से बच्चे के साथ खूब खेलता था और उसपर छोटे भाई की तरह मानता। एक
दिन की बात है पंडित अपने किसी जजमान के यहां चले गए और पंडिताइन कुवे से पानी भरने के लिए चली गई। नेवला बच्चे के साथ खेल रहा था। तब तक नेवले ने देखा कि एक सांप बच्चे की तरफ आ रहा है । नेवले ने उस सांप को पकड़कर कुतर कुतर कर मार डाला।
जब पंडिताइन पानी लेकर आई उन्होंने देखा कि नेवला खून से लथपथ है। उसे खून से लथपथ देखकर पंडिताइन चिल्ला पड़ी और वह सोची कि नेवला उसके बच्चे को मार डाला है। ऐसा सोच के पानी से भरा घड़ा पंडिताइन ने नेवले के ऊपर पटक दिया। बेचारा नेवला वहीं पर दम तोड़ दिया।
अंदर आकर जब पंडिताइन ने देखा कि बच्चा तो आंगन में खेल रहा है। मगर उसके बगल में एक सांप मरा हुआ पड़ा है। अब पंडिताइन को समझ में आ गया कि आखिर क्या हुआ था अब पंडिताइन को अपने किए पर बहुत ज्यादा पछतावा हो रहा था। वह नेवले की वफादारी को नहीं समझ पाई और बिना सोचे समझे ही उसके सर पर पानी से भरा हुआ घड़ा पटक दी।
इसलिए कहा जाता है कि बिना सोचे समझे और हकीकत में देखे किसी कार्य को नहीं करना चाहिए।