क्या आपका ध्यान छोटी छोटी चीजों से भटका देती हैं और आप अपने मंजिल से दूर हो जाते हैं ?
एक बार की बात है, स्वामी विवेकानंद जी जब छोटे थे, और उनके बचपन का नाम नरेंद्र था | उनके गुरु जी ने बताया था कि परीक्षा पास करने के लिए ध्यान और मेहनत जीवन में बहुत जरुरी है, नरेंद्र जी को यह बात समझ में आती लेकिन फिर भी उनका ध्यान बार – बार भटकने लगा | समय बीतता गया और जल्दी ही परीक्षा का दिन भी आ गया नरेंद्र जी ने परीक्षा दी, लेकिन जब परीक्षा का परिणाम आया तो वह हैरान हो गए क्योंकि वह परीक्षा में पास नहीं हो पाए | उन्होंने पहली बार असफलता का सामना करने पर नरेंद्र जी बहुत दुखी हुए, और उनके मन में कई तरह के सवाल उठने लगे क्या मैं परीक्षा में मेहनत नहीं कर रहा था, क्या मैं सभी 
छात्र से कमजोर हूँ ? इनके इस हार के बाद नरेंद्र जी के गुरु ने अपने पास बुलाया और कहा तुम दुखी मत हो असफलता का मतलब ये नहीं कि तुम जीवन से हार गए हो | ये तो यह आपको बताता है की आपका ध्यान पूरी तरह से केंद्रित नहीं था | गुरु जी में नरेंद्र जी को समझाया और कहा, जो व्यक्ति गिरकर फिर से खड़ा होता है , वही एक सच्चा विजेता होता है | गुरु की ये सीख नरेंद्र के दिल दिमाग में उतर गयी और उन्होंने खुद से वादा किया की अब वह अपने मन की पूरी तरह से केंद्रित करेंगे कुछ दिन बीत गए एक दिन गुरु ने नरेंद्र जी बुलाया और कहा, क्या तुमने देखा है की नदी में नाव चलने वाला मल्लाह अपनी नाव की किस तरह किनारे तक ले जा रहा है ? तभी नरेंद्र जी ने जबाब दिया, हाँ गुरु जी वह नाव को एक सीधी दिशा में चलाते हुए उसे सही दिशा में ले जा हैं | फिर क्या, गुरु ने मुस्कुराते हुए बोला नरेंद्र ठीक ही हमें भी अपने जीवन में फोकस करना चाहिए | और जब तक हमारा पूरा ध्यान एक लक्ष्य पर नहीं पहुँच सकता |
गुरु जी ने नरेंद्र जी को एक गिलास दिया, जो पूरा पानी से भरा हुआ था, उन्होंने कहा, ये गिलास लेकर आश्रम के चारो तरफ चक्कर लगाओ | लेकिन ये ध्यान रहे गिलास से पानी की एक बूँद पानी नहीं गिरना चाहिए | नरेंद्र ने पहले दिन से ही ये अभ्यास करने लगे, लेकिन पहले दिन वह ठीक से नहीं कर पाए, क्योंकि उनका ध्यान बार – बार इधर उधर जा रहा रहा | लेकिन नरेंद्र जी रोज अभ्यास करते – करते उन्होंने अपने ध्यान को एकाग्र और मजबूत बना लिया कि पानी की एक बूँद भी गिरनी बंद हो गई | एक दिन गुरु जी ने नरेंद्र जी को दुबारा परीक्षा देने के लिए बुलाया, और कहा नरेंद्र ने गिलास को हाथ में लिया और चलना शुरू किया | जैसे ही आगे बढ़े , उन्होंने देखा आश्रम के बाकी शिष्य उनका मजाक बना रहे थे | और उनपर हस रहे थे | कुछ शिष्य उन्हें परेशान करने के लिए दौड़कर और शोर मचा रहे थे, लेकिन नरेंद्र जी ध्यान सिर्फ उस गिलास पर था | लेकिन नरेंद्र जी  ध्यान एकाग्र था, उनके कानों में कुछ नहीं सुनाई दे रहा था | बस उनकी आँखे उस गिलास पर ही टिकी थीं | नरेंद्र जी ने जब आश्रम का चक्कर पूरा किया और गिलास गुरु जी के हाथ में वापस दिया, तो गुरु जी ने देखा कि पानी की एक भी बूँद नहीं गिरी थी | गुरु जी ने नरेंद्र जी से पूछा नरेंद्र जब तुम्हें सरे लोग परेशान कर रहे थे तो तुमने अपना ध्यान कैसे बनाया नरेंद्र जी ने कहा, गुरु जी मेरा ध्यान केवल उस गिलास पर था | मैंने इस बात पर फोकस कर रहा था कि इस गिलास से पानी न गिरे | गुरु जी नरेंद्र जी बात सुनकर बहुत खुश हुए और कहा तुम , जीवन में अगर तुम्हारा ध्यान अपने काम और लक्ष्य पर रहेगा तो चाहे ये दुनिया कितना भी शोर मचाये और कितना भी परेशान करें तुम अपने इस लक्ष्य से कभी भी विचलित मत होना |
बड़े होकर स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु जी कि इस शिक्षा को अपने जीवन में अपनाया, उन्होंने कहा आप अपने जीवन में जो भी करो उसपर पूरा ध्यान लगाकर करो | जब तक आप अपने लक्ष्य को पूरा न कर लो , तब तक अपने इस लक्ष्य से रुको मत |

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