दीनानाथ की पत्नी अस्पताल में भर्ती थी। उसे बच्चा पैदा होने वाला था। कुछ समय पश्चात नर्स ने आकर दीनानाथ से कही – ” बधाई हो आपको जुड़वा बच्चे मिले हैं!”
दीनानाथ ने कहा-” दोनों बेटे हैं क्या?”
नर्स ने कहा- “नहीं ! एक बेटा और एक बेटी है!”
बेटी के पैदा होने से दीनानाथ बहुत ही ज्यादा दुखी हो गया। वह दोनों बच्चों को लेकर अपने घर गया और अपनी पत्नी से कहा- “हम दो बच्चों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। हमें बेटे को अपने पास रख कर उसकी देखभाल करनी चाहिए और बेटी को मैं अपने मित्र श्यामलाल को दे दे रहा हूं क्योंकि उनका कोई भी संतान नहीं है।”
पत्नी के बार बार मना करने के बाद भी दीनानाथ ने अपनी बेटी को अपने मित्र श्यामलाल को दे दिया। श्यामलाल बेटी को पाकर बहुत ही ज्यादा खुश हुआ।
दीनानाथ का बेटा धीरे-धीरे बड़ा होना लगा। दीनानाथ उसके हर शौक को पूरा करता था। जब उसका बेटा 20 वर्ष का हुआ तो उसने अपनी पत्नी के गहने को बेचकर उसके लिए गाड़ी खरीदी। कुछ दिन बाद दीनानाथ ने अपने खेत को बेच कर अपने बेटे के लिए दुकान खोल दिया और उसकी शादी भी करवा दी।
अब उसका बेटा उनकी परवाह नहीं करता था, उन्हें बात बात में ताने मारा करता था। एक दिन किसी बात को लेकर दीनानाथ के बेटे ने उसे और उसकी पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया।
दीनानाथ अपनी पत्नी को लेकर एक मंदिर में गया। जहां पर उसका मित्र श्यामलाल मिला, जिसे दीनानाथ ने 25 वर्ष पहले अपनी बेटी को दिया था। श्यामलाल ने बताया कि उसकी बेटी अब डॉक्टर बन चुकी है और वह एक अनाथ आश्रम भी चलाती है। श्यामलाल ने दीनानाथ को उसकी बेटी से मिलवाया। उसकी बेटी ने कहा- “अब आप लोग हमारे साथ ही रहेंगे ! आप लोग की सारी सेवाएं और जरूरतें हम पूरा करेंगे।”
इतना सुनते ही दीनानाथ की आंखों से आंसू छलक आया उन्होंने अपनी बेटी से माफी मांगते हुए कहा- “बेटी मैंने तुम्हारे साथ बहुत ही ज्यादा भेदभाव किया है! उसी का परिणाम में भुगत रहा हूं।”
उसकी बेटी ने ढाढस बंधाते हुए कहा- ” पिता जी! जो बीत गया उसे आप भूल जाइए और अब आप एक नई जिंदगी की शुरुआत मेरे साथ कीजिए।” अब दीनानाथ और उनकी पत्नी अपनी बेटी के साथ खुशी खुशी रहने लगे।
दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलता है कि हमें कभी भी बेटी और बेटा में भेदभाव नहीं करना चाहिए क्योंकि बेटों से ज्यादा बेटियां ही मां-बाप के काम में आती हैं।