सुंदरवन जंगल में एक शेर रहा करता था। वह जंगल के जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरा करता था। शेर से जंगल के पूरे जानवर डरते थे।
एक दिन शेर ने एक हिरण का शिकार किया और उसका मांस बड़े ही चाव से खा रहा था। मांस को खाते-खाते शेर के मुंह में उसकी एक हड्डी अटक गई। अब शेर दर्द के मारे चिल्लाने लगा। वह जंगल में बहुत सारे जानवरों से मदद मांगा, मगर उसकी कोई मदद नहीं किया। शेर रोते हुए जा रहा था। तभी उसने एक सारस को देखा। शेर ने उसने कहा- “सारस तुम मेरे गले से हड्डी निकाल दो मैं तुम्हें ढेर सारी मछलियां पकड़ कर दूंगा!”
शेर की यह बातें सुनकर सारस को संदेह हुआ। उसने कहा-” मुझे मूर्ख समझे हो क्या? गले से हड्डी निकलवाने के बहाने तुम मेरा शिकार करना चाहते हो! मैं ऐसा नहीं कर सकता।” यह बोलकर सारस वहां से उड़ गया।
कुछ दूर जाने के बाद शेर को एक खरगोश मिला। उसने खरगोश से भी यही बात कही मगर खरगोश भी शेर से बहुत डरता था। उसने कहा-” अरे! ना बाबा ना! मैं ऐसी गलती थोड़ी ना करूंगा मैं तुम्हारे गले की हड्डी निकालूं और हड्डी निकलते ही तुम मुझे खा जाओ! तुम्हारा क्या भरोसा वैसे भी हमारे बहुत दोस्तों को मारकर खा लिया है।
अब शेर एकदम परेशान हो गया। उसे लगा कि वह अब जल्द ही मर जाएगा। तभी उसने एक गिद्ध को देखा। शेर ने गिद्ध से कहा-” अगर तुम मेरी हड्डी निकाल दोगे तो मैं तुम्हारे लिए ढेर सारे मांस का बंदोबस्त कर दूंगा!”
यह सुनकर गिद्ध ने शेर के गले में अटकी हड्डी को निकाल दिया। हड्डी निकलते ही शेर की जान में जान आई। उसी दिन से शेर और गिद्ध दोनों अच्छे मित्र हो गए। जब भी शेर शिकार करता तो उसे शेर और गिद्ध दोनों मिलकर खाया करते थे। इस तरह से शेर और गिद्ध की दोस्ती बढ़ती गई और वे दोनों एक दूसरे की हमेशा मदद करने को तैयार रहते थे।