बहुत समय पहले की बात है। एक कुएं में एक मेंढक रहता था। वह मेंढक उसी कुएं में पैदा हुआ और उसी ने पला बढ़ा था। उसे बाहर की दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था। उस मेंढक का मानना था की पूरी दुनिया बस इसी कुएं के दायरे तक सीमित है।
एक बार की बात है, बाढ़ के मौसम में एक नदी की मछली बह कर उस कुएं में गिर गई। क्योंकि उस कुएं में वह मेंढक अकेले रहता था, तो थोड़े ही समय में मछली और मेंढक की दोस्ती हो गई और वे दोनों आपस में बातचीत करने लगे।
मछली ने मेंढक से पूछा- क्या तुम्हें पता है, नदी कितना बड़ा होता है?
मेंढक ने छलांग मारते हुए कहा- इससे बड़ा तो नहीं होता होगा!
मछली ने कहा – नहीं! इससे भी बहुत बड़ा!
मेंढक ने एक बार और जोर से छलांग लगाया और कहा- इससे बड़ा तो हो ही नहीं सकता।
मछली ने कहा- नहीं इससे भी बड़ा होता है?
अबकी बार मेंढक ने कुएं की एक छोर से दूसरी छोर तक छलांग लगाया और कहा- इससे बड़ा तो दुनिया में कोई चीज हो ही नहीं सकता।
तब मछली ने कहा- नदी इस छोटे कुएं से हजारों लाखों गुना ज्यादा बड़ा होता है।
यह बातें सुनकर मेंढक जोर जोर से हंसने लगा और कहा कि बेवकूफ बनाने के लिए मैं ही मिला हूं और कोई नहीं मिला तुमको! इस कुएं से बड़ा इस दुनिया में कोई चीज हो ही नहीं सकता!
दोस्तों आजकल हमारे समाज में उस कुएं के मेंढक की सोच वाले बहुत ही ज्यादा लोग हैं, जिनके सोचने का दायरा बहुत ही सीमित है और वह उस सीमित दायरे से आगे भी नहीं निकालना चाहते। मगर वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें अपनी सोच का दायरा बड़ा करके चलना चाहिए। क्योंकि जब दायरा बड़ा होगा तो ही हमें कुछ नया सीखने को मिलेगा।
हमें उस कुएं के मेंढक की तरह नहीं बनना चाहिए हमें अगर बनना चाहिए तो उस नदी की मछली की तरह जिसका दायरा असीमित हो।