हिमालय के पहाड़ों पर बहुत सारे पेड़ों का अंबार था। उसी में से एक पेड़ पर दो चिड़िया रहा करती थी। दोनों चिड़िया एक ही घोसले में रहा करती थी। दोनों ने अपना घोंसला मिलकर बनाया था। मगर दोनो चिड़ियों की सबसे बड़ी कमियां थी कि वे दोनों बहुत ही आलसी थी। किसी काम को करने में उनको बहुत ही ज्यादा आलस आता था।

धीरे धीरे अब सर्दी का मौसम आने लगा । कुछ समय बाद उनके घोसले में एक छोटा सा छेद हो गया और उनके घोसले में ठंड हवाएं आने लगी। दोनों चिड़ियों को बहुत ही ज्यादा ठंड लगती थी। मगर घोसले में बैठे दोनों चिड़िया मन ही मन यही सोचती रहती थी की “दूसरी चिड़िया घोसले को ठीक क्यों नहीं कर रही है ?”

इस तरह से दोनों चिड़िया एक दूसरे से घोसले का छेद ठीक करने की उम्मीद लगाए बैठी हुई थी। मगर किसी ने आगे बढ़कर उस घोसले का छेद ठीक नहीं किया।

धीरे धीरे सर्दी का मौसम बढ़ता गया। एक दिन वहां पर बर्फबारी होने लगी। बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े उन दोनों चिड़ियों के घोंसले में आने लगे। मगर आलस्य के कारण दोनों चिड़ियों ने उस छेद को नहीं भरा।

धीरे-धीरे बर्फबारी भी बढ़ने लगी और उनके घोसले में बर्फ भी जमा होने लगे मगर अब भी आलस्य के कारण किसी चिड़िया ने भी उस छेद को नहीं भरा। अंत में दोनों चिड़िया उसी घोसले में ठंड के मारे मर गई ।

इस प्रकार से अपनी आलसी स्वभाव के कारण दोनों चिड़ियों ने अपनी जान को गवा दिया। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में अवश्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि आलस्य का फल बहुत ही बुरा होता है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *