एक जंगल में एक बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक कौवा और एक चिड़िया का घोंसला था। दोनों बहुत समय पहले से उस बरगद के पेड़ पर रहते थे।
एक दिन की बात है जंगल में बहुत ही ज्यादा बारिश और तूफान आया। जिससे चिड़िया का घोंसला उजड़ गया। वह अपने बच्चों के साथ कौवे के घोसले के पास गई और उससे बोली-” मित्र जब तक यह तूफान नहीं रुक जाता तब तक मुझे अपने घर में शरण दे दो! नहीं तो मेरे बच्चे मर जाएंगे।”
कौवा बहुत ही कठोर दिल का था उसने उस चिड़िया को अपने घर में आने से मना कर दिया। यह सुनकर चिड़िया बहुत ही उदास हुई और किसी तरह से अपने बच्चों की जान बचा कर उस तूफान खत्म होने तक सुरक्षित रखी।
तूफान खत्म होने के बाद चिड़िया ने अपना एक बहुत ही मजबूत घोंसला बना लिया। वह अपने घोसले को बनाने के लिए दिन रात मेहनत की।
कुछ समय बाद जंगल में फिर बहुत ही ज्यादा वर्षा और तूफान होने लगी, जिससे कौवा का घोंसला नष्ट हो गया मगर चिड़िया का घोंसला टस से मस नहीं हुआ क्योंकि वह बहुत ही मजबूत घोंसला बनाई थी। अब कौवा अपने बच्चों के साथ उस चिड़िया के घोसले के पास पहुंचा और चिड़िया से पनाह देने के लिए प्रार्थना किया। चिड़िया बहुत ही दयालु थी। उसने बीती बातों को भुलाकर उस कौवे को अपने घोसले में रहने के लिए जगह दे दी।
अब कौवे को अपनी गलती का एहसास हो गया था कि उसने चिड़िया के साथ कितना बुरा किया था। इसके लिए कौवे ने चिड़िया से माफी मांगी। कुछ समय बाद कौवा और चिड़िया दोनों एक अच्छे मित्र हो गए और हर सुख दुख में एक दूसरे का साथ देने लगे।
इस कहानी से हमें यही सीख मिलता है कि हमें मिल जुल कर रहना चाहिए और संकट के समय में एक दूसरे की मदद करनी चाहिए, क्योंकि जब हम किसी की मदद किए रहेंगे तभी हमारा कोई मदद करेगा।