रामू लोहार मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करता था। वह लोगों की लोहे की वस्तुओं को ठीक करके उनसे पैसे कमाता था। एक दिन वह बाजार से कुछ सामान लेने गया था, तो उसने बगल की दुकान पर दो सुंदर मटको को देखा। उसे दोनों मटके बहुत ही अच्छे लगे और रामू लोहार ने दोनों मटको को खरीद लिया और सोचा कि इन मटको से मैं नदी से पानी भर कर लाऊंगा। इनमें बहुत ही ज्यादा पानी आएंगे जिससे मेरे घर का एक दिन का पानी आराम से चल जाएगा। यही सोचकर रामू लोहार ने मटके खरीद लिया।

वह मटको को लेकर अपने घर आया अगले दिन रामू लोहार नदी से दोनों मटको में पानी भर लिया और उनको लेकर अपने घर पहुंचा। उसने देखा कि एक मटके से पानी निकल कर आधा हो गया था, क्योंकि उस मटके में एक छेद था। अब रामू जब भी पानी लेकर आता तो एक मटके में छेद होने के कारण मटके में आधा ही पानी आता था।

एक दिन टूटे मटके ने सही मटके से कहा-” मैं कितना बदकिस्मत हूं! रामू मेरे लिए कितना मेहनत करता है और मैं उसे सिर्फ आधा ही पानी दे पाता हूं!”

तब सही मटके ने उस टूटे हुए मटके का खूब मजाक उड़ाया और कहा -” तुमको शर्म आनी चाहिए तुम किसी काम के नहीं हो!”

एक दिन जब रामू पानी भरने नदी पर जा रहा था, तब टूटे हुए मटके ने रामू से कहा-” मुझे अपने साथ मत ले जाया करो! क्योंकि मैं बेकार हूं! मैं तुम्हारा आधा पानी रास्ते में ही गिरा देता हूं। इसलिए तुम मुझे फेंक दो.”

रामू ने कहा-” ऐसी बात नहीं है तुम भी बड़े काम के हो चलो मैं तुमको एक चीज दिखाता हूं !”

उसने टूटे हुए मटके को नदी के रास्ते पर ले गया और उसे फूल से भरी एक बागवानी को दिखाया। रामू ने टूटे मटके से बोला – ” यह बागवानी मेरी है! जब भी मैं तुमको नदी से लेकर आता हूं तो जो भी पानी गिरता है, मैं इस बागवानी में गिरा देता हूं और इन फूलों को बेचकर मैं बहुत ही अच्छे पैसे कमा लेता हूं।”

यह सुनकर टूटा हुआ मटका बहुत ही खुश हुआ और वह खुशी खुशी रामू लोहार के घर में रहने लगा।

दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कोई भी चीज बेकार नहीं होती है। बस हमें उसका इस्तेमाल करने गाना चाहिए।

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