एक नगर में रेवती नाम की एक औरत रहती थी। उसके दो बेटे मोहन और सोहन थे। मोहन ने अपनी शादी प्रेम विवाह से किया था। उसकी बीवी थोड़ी सांवली थी और दिखने में थोड़ा बदसूरत भी थी, वही सोहन की पत्नी रेवती ने खुद पसंद की थी और वह काफी सुंदर थी। रेवती मोहन की पत्नी से बहुत ही ज्यादा जलन रखती थी। उसे देख देख कर हमेशा गुस्सा करती थी और बात बात में ताने सुनाया करती थीं मगर सोहन की पत्नी कभी भी उलट कर अपनी सास का जवाब नहीं देती थी। वह हमेशा अपने सास और ससुर की सेवा करती थीं।
वहीं रेवती, सोहन की पत्नी से बहुत ही प्यार करती थी और उसके साथ बहुत ही मित्रवत व्यवहार करती थी।

एक दिन की बात है मोहन की पत्नी अपने मायके चली गई। वहीं सोहन ने अपनी पत्नी के साथ नैनीताल घूमने जाने का प्लान किया। तभी अचानक रेवती की तबीयत बिगड़ गई। रेवती के पति ने सोहन और उसकी पत्नी से अपने घूमने के प्लान को आगे बढ़ाने के लिए आग्रह किया। मगर सोहन की पत्नी गुस्सा गई और बोली-” मां जी की तबीयत तो हमेशा खराब रहती है! तो क्या हम अपने घूमने का प्लान रद्द कर दे। ऐसा नहीं हो सकता हम जरूर घूमने जाएंगे!” ऐसा बोलकर अगले ही दिन सोहन और उसकी पत्नी घूमने के लिए नैनीताल चले गए।

इधर रेवती की तबीयत और बिगड़ गई, इसे देखते हुए मोहन ने अपनी पत्नी को मायके से बुला लिया। मोहन की पत्नी ने अपनी सास रेवती की खूब सेवा सत्कार कि और जब तक वह एकदम ठीक नहीं होगी तब तक मोहन की पत्नी ने रेवती की देखभाल करती रही। अब रेवती को समझ में आ गया था कि उसकी पसंद वाली बहू उसे बीमार हालत में छोड़कर नैनीताल घूमने चली गई, जबकि जिसे वह बदसूरत कहके हमेशा ताने सुनाया करती थीं, वही बहू उसके मुश्किल परिस्थिति में काम आयी। तबीयत ठीक होने के बाद रेवती ने मोहन की पत्नी को भी अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगी। अब उसे समझ में आ गया था कि कोई भी व्यक्ति चेहरे से अच्छा या बुरा नहीं होता है बल्कि इंसान अच्छा कर्म ही उसको सुंदर बनाता

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