एक वैज्ञानिक था। वह मछलियों और अन्य जीव-जंतुओं पर शोध किया करता था। एक दिन उसने समुद्र से एक बड़ी सी मछली को पकड़कर ले आया और उसे एक शीशे के पारदर्शी टैंक में रख दिया। शीशे के टैंक में उस वैज्ञानिक ने कुछ छोटी-छोटी मछलियों को भी डाला। छोटी मछलियों को देखते ही बड़ी मछली उनको खा गई। कुछ दिन बाद उस वैज्ञानिक ने और छोटी मछलियों को उस शीशे के टैंक में डाला और फिर उस बड़ी मछली ने छोटी मछलियों को खा लिया।

एक बार वैज्ञानिक ने उस शीशे के टैंक में एक पारदर्शी विभाजक शीशा डाल दिया। एक तरफ वह बड़ी मछली थी और दूसरी तरफ वैज्ञानिक ने छोटी-छोटी मछलियों को डाल दिया। विभाजक पारदर्शी शीशे से बड़ी मछली छोटी मछलियों को बिना किसी रूकावट के देख सकती थी और उसे लगता था कि वह मछलियां उसी टैंक में है। वह बड़ी मछली, छोटी मछलियों को खाने के लिए जब भी आगे बढ़ती तो उस विभाजक पारदर्शी शीशे से टकरा जाती थी। बड़ी मछली ने बहुत सारे प्रयास किए मगर वह छोटी मछलियों को नहीं खा पाई, क्योंकि वह बार-बार विभाजक पारदर्शी शीशे से टकरा जाती थी।

कुछ दिनों बाद उस बड़ी मछली ने छोटी मछलियों के तरफ जाना ही छोड़ दिया। इसको देखते हुए वैज्ञानिक ने पारदर्शी विभाग शीशे को टैंक से बाहर निकाल दिया।

अब पारदर्शी विभाजक शीशे के बाहर निकलने के बाद भी वह बड़ी मछली उन छोटी मछलियों को खाने के लिए नहीं जाती थी क्योंकि उसके मन में बस चुका था कि आगे कोई ऐसी चीज है जो उसे रोक देगी और वह हार मान कर अपनी तरफ ही रहने लगी।

दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में सफल होने के लिए अथक प्रयास करते रहना चाहिए। कभी भी मेहनत करने से रुकना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि अगर हम मेहनत करते रहे तो हमारे रास्ते की रुकावट हट जाए और हमें जल्द से जल्द सफलता मिल जाएगी।

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