एक राज्य में एक बहुत ही प्रतापी राजा राज किया करते थे। उनकी माता का नाम सुनंदा था। सुनंदा एक बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की औरत थी। वह हमेशा ब्राह्मणों को भोजन कराया करती थी और उन्हें खूब दान दिया करती थी।
राजा ने बड़े ही कर्मकांड से अपनी माता का क्रिया कर्म किया। उसके बाद उन्होंने अपने राज्य के सबसे बड़े ब्राह्मण को अपने राज्य में बुलाया और उन्होंने अपनी मां की अंतिम इच्छा उस ब्राह्मण से बतलाया। ब्राह्मण ने कहा-” महाराज! आपकी माता की अंतिम इच्छा तभी पूरा होगी, जब आप हमें सोने के सेव दान करेंगे! अन्यथा उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो पाएगी।”
राजा ने ढेर सारा सोने के सेव बनवा कर उस ब्राह्मण को दान कर दिए। यह बात उसके एक मंत्री को रास नहीं आई।
कुछ दिन बाद राजा के मंत्री ने उसी ब्राह्मण को अपने घर अपनी माता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए बुलाया। मंत्री उस ब्राह्मण को अपने घर में ले गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। कुछ देर बाद मंत्री अपने हाथ में एक चाकू लेकर आया। चाकू को देखकर ब्राह्मण डर गया और उसने मंत्री से कहा-” अरे जजमान! आप यह क्या कर रहे हैं ?”
तब उस मंत्री ने कहा-” मेरी मां के पेट में एक बहुत ही बड़ा फोड़ा था। वह चाहती थी कि मै उनके फोड़े को वैद्य से चिरवा दूं! मगर मैं ऐसा कर पाता उससे पहले माता की मृत्यु हो गई। इसलिए उनकी अंतिम इच्छा पूरा करने के लिए मैं आपका पेट फाड़ दूंगा।”
इतना सुनते ही ब्राह्मण समझ गया कि यह मंत्री, राजा की माता सुनंदा के अंतिम इच्छा पूरा करने के लिए लिए गए सोने के सेव का बदला ले रहा है।
उस ब्राह्मण ने मंत्री से माफी मांगी और राजा के दरबार में जाकर राजा से भी माफी मांगी और कभी भी ऐसी गलती ना करने की कसम खाई।