एक नगर में चुन्नी नाम का सेठ रहता था। वह रोज सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर मंदिर में पूजा करता था। मंदिर में पूजा करने के बाद वह अपने गोदाम जाता था और गोदाम से आने के बाद वह अपने भैसों को चारा खिलाता था। इस तरह से वह काफी मेहनत करता था, जिससे उसकी आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ रही थी।

मगर चुन्नी सेठ एक बात से बहुत परेशान रहा करता था कि उसका बेटा देर तक सोता रहता था और उसका किसी काम में मन भी नहीं लगता था। जब भी चुन्नी सेठ अपनी बेटे को जगाने जाया करता, तो वह कोई ना कोई बहाना बनाकर फिर से सो जाया करता था। उसके बेटे का व्यापार में तो बिल्कुल ही मन नहीं लगता था। चुन्नी सेठ को यह चिंता हमेशा सताती थी कि उसकी जाने के पश्चात उसका बेटा उसका व्यापार कैसे संभालेगा, क्योंकि वह तो बहुत ही आलसी है।

धीरे-धीरे चुन्नी सेठ बूढ़ा होने लगा और एक दिन बीमार पड़ गया। कुछ दिन बिस्तर पर पड़े रहने के बाद वह मर गया। चुन्नी सेठ का बेटा अभी अब भी आराम से देर तक सोता, कोई काम भी नहीं करता था। धीरे-धीरे चुनी सेठ द्वारा कमाए गए धन कम होने लगे और व्यापार में घाटा होने लगा। व्यापार में घाटा को देखकर उसका बेटा परेशान हो गया।

चुन्नी सेठ का बेटा व्यापार को समझने के लिए अपने नाना के पास गया। उसके नाना ने उससे कहा- “अपने पिता की तरह रोज सुबह 4 बजे उठो और नहा धुल कर मंदिर में पूजा करो उसके बाद अपने गोदाम में जाओ और वहां से आने के बाद अपने भैंसों को चारा खिलाओ।”

चुन्नी सेठ के बेटे ने यही तरीका अपनाया और रोज गोदाम जाने लगा। अब गोदाम में काम करने वाले नौकर गोदाम का अनाज नहीं चोरी कर पाते थे। धीरे धीरे चुन्नी के बेटे ने व्यापार करना सीख लिया और उसे व्यापार में खूब नफा होने लगा।

दोस्तों इस कहानी से मिलती है कि हमें आलस नहीं करना चाहिए। क्योंकि आलस्य के कारण बनी बनाई धन और दौलत सारी खत्म हो जाती हैं और हमारे हाथ कुछ भी नहीं आता है।

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