इस कहानी की शुरुआत होती है एक बिल्ली से, जो बहुत ही आदमखोर है। बिल्ली को मुर्गी के बच्चे बहुत ही पसंद थे। वह उन्हें बड़े ही चाव से खाती थी। जहां भी मुर्गी के बच्चे दिखती उन्हें पकड़कर और मारकर खा जाती थी।

उस बिल्ली की इस करतूत को देखकर सारी मुर्गियां बहुत परेशान थी। सभी मुर्गियां उससे अपने बच्चों को बचाने के लिए छुपा दिया करती थी। मगर बिल्ली कहीं से भी मौका पाकर उनके बच्चों को झपट कर मार के खा जाती थी।

एक दिन की बात है, एक मुर्गी बीमार पड़ गई। तो बिल्ली ने सोचा चलो हमदर्दी दिखाते हैं।
वह मुर्गी के पास गई और बोली- अरे बहन! सुनो तुम बहुत ज्यादा बीमार हो कहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर दूं।

मुर्गी ने कहा- तुम मेरी क्या मदद कर सकती हो?

बिल्ली ने कहा- मैं तुम्हारे परिवार की देखभाल कर सकती हूं ! तुम्हारे बच्चों को खाना खिला सकती हूं।

यह सुनकर मुर्गी ने बिल्ली से कहा- “अगर तुम्हें हमारी मदद ही करनी है! तो हमारे परिवार और हमसे दूर ही रहा करो! क्युकी तुम्हारे कारनामों से मै भी अच्छी तरह वाकिफ हूं। इसलिए यहां से चली जाओ।
यह सुनकर बिल्ली अपना झुका हुआ सिर लेकर वापस चली गई।

दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि अपने दुश्मन की शुभकामनाओं और सहानुभूति पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि वह हमारा भला सोच कर हमारे पास नहीं आते बल्कि हमारी मजबूरी का फायदा लेने हमारे पास आते हैं।

 

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