फागुन का महीना था| बसंत ऋतु थी , आम के पेड़ पर बैठ कर सुबह -सुबह कोयल कु – कु कर रही थी |
कोयल की मीठी और सुरीली आवाज सुनकर एक बगुला उसके करीब आ पंहुचा , और फिर आकर बोला , कोयल बहन तुम्हारी आवाज मे तो बहुत मिठास है |
तो फिर ?
मगर तुम्हारी सूरत तो काली है , भगवान ने सचमुच बहुत बड़ी गलती की है , बगुला बोला |
कैसी गलती ? कोयल उत्सुक हो कर बोली |
बगुला ने कहा – जैसी तुम्हारी सूरत है आवाज भी वैसी होनी चाहिए | देखो मे कितना गोरा -चिट्टा हु , तुम्हारी सुरीली आवाज तो मुझको मिलना चाहिए |
कोयल बोली – बगुला भाई एक बात बोलू |
जरूर बोलो – बगुला ने कहा
कोयल बोली – भगवान ने जो कुछ किया है , ठीक ही किया है , उसने कोई गलती नहीं की है |
कैसे नहीं की है ? कोयल की बात मानने को बगुला एक दम तैयार नहीं था |
फिर कोयल ने बोला – जरा सोचो तुम्हारा रंग गोरा है तो तुम को कितना घमंड है , अगर तुम्हारी आवाज भी सुरीली और मीठी होती तो तुम्हारा घमंड क्या होता , यह सुनकर बगुला सरम के मारे कुछ बोला ही नहीं और चुप – चाप चला गया | दोस्तों आप को भगवान ने जैसी भी सूरत दी है सही है , आदमी अपने कर्मो से अच्छा बनता है न की सकल सूरत से |