किसी जंगल में एक बरगद का बहुत ही बड़ा पेड़ था । उसकी जड़ें बड़ी लंबी व तने काफी मजबूत थे।उसे अपनी विशालता पर बड़ा ही अभिमान था। वह हरदम घमंड में चूर रहता था। आस पास के पेड़ पौधों से उसकी कभी नहीं बनती थी।उसी बरगद से कुछ दूरी पर एक छोटा शहतूत का पेड़ था । बरगद का पेड़ कभी भी उसे अपना भाई नहीं समझता था। बात बात पर उसे छूटका कह कर चिढ़ा दिया करता था। कभी कभी तो अपने तनो का वजन उस पर टिका देता था और कभी कभी दोनों में झगड़ा हो जाय करता। बरगद मजबूत और मोटा होने के नाते शहतूत को हमेशा भला बुरा कहता रहता था। बेचारा शहतूत करता भी क्या छोटा और कमजोर होने के नाते बरगद का कुछ कर नहीं पाता था।
एक दिन की बात है एक लकड़हारा लकड़ियां बिनने जंगल में आया वह शहतूत के नीचे बैठ कर आराम कर रहा था तभी शहतूत ने लकड़हारे से बोला – क्यों भैया तुम रोज लकड़ियां बिनने आते हो ! मै तुम्हे एक तरकीब बताऊं जिससे तुम्हरा घर लकड़ियों से भर जाएगा और तुमको रोज जंगल में आने की जरूरत नहीं पड़ेगी।लकड़हारा खुश होकर बोला – हा ! हा! शहतूत भैया जरूर बताओ वह तरकीब।
शहतूत बोला- तुम गांव जाकर एक मजबूत कुल्हाड़ी बनवाओ मै तुमको उसने लगाने के लिए एक मजबूत डंडा दे दूंगा। तुम उस कुल्हाड़ी से मेरे सामने वाले विशाल बरगद को काट कर घर ले जाना। इसे चूल्हे में भी जलाना और फर्नीचर भी बनाकर बेचना।
इतना सुनते ही लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ और गाव से कुल्हाड़ी बनवा कर ले आया। शहतूत ने अपना एक मजबूत तना तोड़कर उसे दे दिया।
अब लकड़हारा बरगद पर चढ कर उसकी शाखाएं काटने लगा।बरगद कराह उठा लेकिन करता भी क्या! विवश और लाचार था। आस पास के पेड़ो से दुश्मनी होने के नाते उसकी कोई मदद नहीं किया और देखते ही देखते बरगद लकड़हारे के हाथो कटकर जमीन पर गिर पड़ा। लकड़हारे ने उसके छोटे छोटे टुकड़े काटकर घर ले जाना शुरू कर दिया और अगले दिन वह विशालकाय बरगद वहां किसी को नजर नहीं आया और शहतूत वही बगल में खड़ा मुस्कुरा रहा था।