बहुत समय पहले की बात है । एक बार एक पंडित जी अपने किसी जजमान के यहां से पूजा पाठ करवा के घर अपने घर वापस जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ा। पंडित जी नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगे। अचानक उनको एक मगरमच्छ दिखाई दिया, जिसके मुंह में एक बड़ी सी हड्डी फांसी हुई थी। मगरमच्छ ने रोते हुए पंडित जी से बोला- अगर आप मेरे मुंह से यह हड्डी निकाल देंगे, तो मैं आपका बहुत एहसान मंद रहूंगा क्यूकी मुझे इसकी वजह से बहुत पीड़ा हो रही है।
यह सुनकर पंडित जी को दया आ गया और उन्होंने उस मगरमच्छ के मुंह से हड्डी निकालने का फैसला किया । पंडित जी ने जैसे ही मगरमच्छ के मुंह से हड्डी को निकाला, मगरमच्छ नहीं झपट कर पंडित जी के पैर को जकड़ लिया व जोर जोर से हंसने लगा और हसते हुए बोला – आप मेरे जाल में फंस गए हैं, मैं अब आप को खा जाऊंगा।
यह सुनकर पंडित जी घबरा गए और घबराए हुए भाव से बोले यह अन्याय है! हमें किसी न्यायाधीश के पास जाना चाहिए l वह जैसा भी निर्णय करेगा हमें मंजूर रहेगा। मगरमच्छ ने पंडित जी की बात मान लिया दोनों एक समझदार लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने दोनों की बातें सुनी और थोड़ी देर सोचने के बाद बोली- पंडित जी! आप एक बार और मगरमच्छ के मुंह में हड्डी फंसा कर के उसे निकालकर दिखाइए तो मुझे विश्वास होगा कि आपने मगरमच्छ के मुंह से हड्डी को निकाला है!
पंडित जी ने ठीक वैसे ही किया और मगरमच्छ के मुंह में एक बड़ी सी हड्डी फंसा दी । जैसे ही पंडित जी ने हड्डी को फंसाया, लोमड़ी ने कहा- अब ऐसे ही इसे रहने दीजिए पंडित जी! यह मगरमच्छ बहुत ही दुष्ट और चालाक प्रवृत्ति का है। इसने अपनी चालाकी से आप को फंसाया था , अब इसे अपने किए की सजा तो मिलनी ही चाहिए। मगरमच्छ यह सुनकर रोने लगा और अपनी गलती के लिए पंडित जी से क्षमा मांगने लगा । मगर उसकी दुष्टता से वाकीफ पंडित जी ने उसकी मदद नहीं की और उसे उसी हालत में छोड़कर चले गए । मगरमच्छ अपनी चालाकी की वजह से सचमुच फस चुका था।
इसलिए दोस्तों कहा जाता है की जो व्यक्ति आपकी मदद करें उसका बुरा कभी नहीं करना चाहिए।