एक जंगल में एक झील था। जिस में दो मछलियां रहती थी। उनके बीच में काफी ज्यादा मित्रता थी। उनमें से एक मछली काफी समझदार थी और हर काम सोच समझकर और समझदारी से करती थी। जबकि उसके उलट दूसरी मछली कर्म में विश्वास ना रखकर सिर्फ भाग्य में विश्वास रखती थी। उसका मानना था जो नसीब में होगा वही होकर रहेगा।
समझदार मछली तालाब में घूम घूम कर अपना खाना इकट्ठा करती जबकि दूसरी मछली अपने भाग्य के सहारे बैठी रहती थी और जो कुछ थोड़ा बहुत मिल जाता था उसे अपना भाग्य समझ कर खाती थी।
एक दिन की बात है, झील के किनारे दो व्यक्ति आए। वे आपस में बात कर रहे थे कि कल इस झील से सारी मछलियों को पकड़कर बाजार में बेच दिया जाएगा। यह बातें समझदार मछली सुन रही थी, उसने जल्दी से आकर दूसरी मछली से सारी बातें बताई। समझदार मछली ने उस झील को छोड़कर जाने का निर्णय किया। जबकि दूसरी मछली ने कहा – तुमको जहां जाना है वहां जाओ मैं कहीं नहीं जाऊंगी जो मेरे भाग्य में होगा, वही होकर रहेगा । मैं इस झील को छोड़कर नहीं जाऊंगी।
पहली मछली झील छोड़ कर चली गई । अगले दिन मछुआरे आए। उन्होंने जाल फेंक कर सारी मछलियों के साथ उस दूसरी मछली को भी पकड़ लिया वह काफी छठपटाई लेकिन मछुआरों ने उसे मारकर बाजार में बेच दिया।
इसलिए कहा गया है कि सिर्फ भाग्य के सारे बैठने से सब कुछ नहीं होता । कुछ अच्छा करने के लिए पहले कर्म करना पड़ता है, उसके पश्चात जीवन में कुछ अच्छा होता है । भाग्य के सहारे बैठने वाले हमेशा निराश होते हैं।

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