एक गांव में मोहन और सोहन नाम के दो भाई रहते थे। मोहन की उम्र 12 साल और सोहन की उम्र 8 साल थी। मोहन और सोहन दोनों हमेशा एक ही साथ खेलते, एक ही साथ पढ़ने जाते और एक ही साथ खाना खाते थे। मगर दोनों बच्चे बहुत ही शरारती थे। मौका देख कर वह किसी भी शरारत को करने में चूकते नहीं थे।
एक दिन जब घर पर मोहन और सोहन के माता-पिता नहीं थे, तब दोनों भाई मौका देखकर गांव से बाहर निकल गए। दोनों ने गांव के बाहर एक कुएं के पास खेलना चालू कर दिया। अचानक मोहन का पैर फिसल गया और वह कुएं में जा गिरा। मोहन को कुएं में गिरता देख सोहन परेशान हो गया। वह जोर-जोर से मदद के लिए चिल्लाया, मगर मदद के लिए कोई नहीं आया। इधर कुएं में पड़ा मोहन डूब रहा था।
तभी सोहन ने कुएं के बगल में पड़ी हुई एक रस्सी से बंधी बाल्टी को देखा। सोहन ने उस बाल्टी को रस्सी के सहारे कुएं में लटकाया जिसे मोहन ने पकड़ लिया। सोहन धीरे धीरे मोहन को ऊपर खींचने लगा और काफी देर मेहनत करने के बाद उसने अपने बड़े भाई मोहन को बाहर निकाल लिया।
घर पर आकर सोहन ने मोहन के कुएं में गिरने वाली बात को बताया और उसे रस्सी से खींचकर निकालने वाली बात भी बताया। सोहन की बात पर किसी को विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि उसकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। सब लोगो ने यही कहा कि ” यह छोटा सा लड़का ऐसा असंभव कार्य कर ही नहीं सकता है।”
तभी एक बूढ़े आदमी ने वहां आकर कहा-” यह छोटा लड़का अपने भाई को इसलिए बचा पाया क्योंकि वहां पर इसे कोई यह कहने वाला नहीं था कि तुम यह कार्य नहीं कर सकते हो! जिसके कारण इसने अपने आत्मविश्वास से असंभव कार्य को संभव कर दिया।”
दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। परिस्थिति कैसी भी हो हमें अपने आप पर विश्वास रखना चाहिए और मेहनत करते रहना चाहिए। क्योंकि मेहनत करने से ही असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है। अगर आप मेहनत करना ही छोड़ देंगे तो जो संभव रहेगा वह भी असंभव सा लगेगा। इसलिए हमेशा मेहनत कीजिए और पूरी लगन और आत्मविश्वास से कीजिए।