एक नगर में एक शिल्पकार रहा करता था। वह पत्थर को काटकर मूर्तियां बनाया करता था और उन्हें बाजार में बेच दिया करता था । एक दिन वह पत्थर की तलाश में एक नदी के किनारे गया और दो पत्थरों को लेकर आया। उसने एक पत्थर को अपने हथौड़े से काटना छांटना चालू ही किया था , तभी वह पत्थर जोर-जोर से रोने लगा और शिल्पकार से बोला- “भैया! मुझे मत तोड़िए। मैं टूट जाऊंगा। मुझे बहुत दर्द हो रहा है, कृपा करके मुझे छोड़ दें।”

शिल्पकार को उस पत्थर पर दया आ गया और उसने उस पत्थर को छोड़ दिया। उसने दूसरे पत्थर को उठाया और उस पर हथौड़े से निशान करने लगा। दूसरे पत्थर ने चुपचाप शिल्पकार के चोट को सहता गया।

शिल्पकार ने उसे काट छांट कर भगवान की एक सुंदर मूर्ति का आकार दे दिया। उसी नगर के कुछ व्यक्तियों ने उस भगवान की मूर्ति को एक मंदिर में रखकर उसकी पूजा करने लगे। वे पहले पत्थर को भी अपने साथ ले गए और उसे मंदिर के बाहर रख दिए और वे पहले पत्थर पर नारियल को मारकर फोड़ा करते थे।

अब पहले पत्थर को यह देख कर बड़ा दुख होता था कि दूसरे पत्थर के ऊपर दूध और फल फूल चढ़ाए जाते हैं। जबकि उसके ऊपर नारियल तोड़ा जाता है। उसने दूसरे पत्थर से कहा- ” ऐसा क्यों मेरे साथ हो रहा है ? ”

दूसरे पत्थर ने जवाब दिया – “जब वह शिल्पकार तुम्हें चोट पहुंचाकर तुम्हें मूर्ति का आकार देने का प्रयत्न कर रहा था। तब तुम्हें दर्द हो रहा था। अगर तुम उस दर्द को सह लेते तो आज मेरी जगह तुम होते और लोग तुम्हारी पूजा करते और तुम्हें फल फूल और दूध चढ़ाते। इसी कारण आज तुम इस हालत में हो। मैंने उस दर्द को सहा, अब मैं निश्चिंत होकर इस मंदिर में बैठा रहूंगा और तुम्हारे ऊपर नारियल ही फोड़ा जाएगा।”

इसलिए दोस्तों कहा जाता है जब संघर्ष का समय हो तो हमें डटकर उसका सामना करना चाहिए ना कि दुम दबाकर भागना चाहिए। क्योंकि संघर्ष खत्म होने के बाद हमारा जीवन काफी सरल हो जाता है।

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