एक जंगल में एक झील थी। उस झील में जंगल का कोई भी जानवर शाम ढलने के बाद पानी पीने नहीं जाता, क्योंकि जो भी शाम ढलने के बाद वहां पानी पीने जाता, वह वापस लौट कर नहीं आता था।
एक दिन जंगल में एक हिरण अपने मित्र बंदर से मिलने आया। बंदर ने उस हिरण को पूरे जंगल के बारे में सारी चीजें बताया मगर उसने हिरण को उस शैतानी झील के बारे में बताना भूल गया। हिरण कुछ दिन तक अपने मित्र बंदर के साथ ही रहने वाला था।
एक दिन की बात है उस हिरण को घास चरते चरते काफी देर हो गया। दिन ढल गया और शाम हो गई । हिरण को बहुत तेजी से प्यास लगा था। वह उसी झील के पास पहुंचा और उसमें पानी पीने लगा। अचानक हिरण के ऊपर झील से निकलकर एक मगरमच्छ ने हमला कर दिया। मगर हिरन उस मगरमच्छ की पकड़ में नहीं आया और भागने लगा। भागते भागते वह अपने मित्र बंदर के पास पहुंचा और उसे सारी बात बताई। बंदर ने सभी जानवरों को इकट्ठा करके उस झील के पास ले गया।
जानवरों को देखकर मगरमच्छ पानी में बैठ गया। मगर उसका पीठ दिखाई दे रहा था। हिरण ने कहा -“वह देखो वही मगरमच्छ है। जो सारे जानवरों को मारकर खा जाया करता है!”
मगर वह मगरमच्छ हिलडुल नहीं रहा था। इसलिए किसी जानवर को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह मगरमच्छ है। सबने एक स्वर में कहा- “वह मगरमच्छ नहीं है! बल्कि एक पत्थर है। शैतान झील ने तुम को डरा दिया।”
हिरण ने सब को विश्वास दिलाने के लिए कहा- “अगर यह पत्थर होगा, तो यह खुद बोलकर बताएगा कि मैं पत्थर हूं!”
इतना सुनते ही मगरमच्छ जोर से बोला- “मैं मगरमच्छ नहीं पत्थर हूं!”
यह आवाज सुनते ही सारे जानवर समझ गए कि यह मगरमच्छ ही है जो सभी जानवरों को मारकर खाता है। क्योंकि पत्थर तो बोल ही नहीं सकता है। सारे जानवरों ने मिलकर उस आदमखोर मगरमच्छ को उस झील से भगा दिया और खुशी-खुशी रहने लगे।