एक बार की बात है एक राजा के दरबार में एक विदेशी नागरिक आया। उस विदेशी नागरिक ने अपने साथ एक बड़ा सा और सुंदर सा पत्थर राजा के लिए उपहार में लेकर आया था। राजा उस सुंदर पत्थर को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ और अपने महामंत्री को एक भगवान शिव की प्रतिमा बनाने के लिए आदेश दिया।

महामंत्री ने उस बड़े पत्थर को ले जाकर एक बहुत ही होनहार मूर्तिकार को दे दिया और उससे कहा -” इसे 10 दिन के अंदर एक सुंदर सी भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर राजा के दरबार में लेकर आए!”

मूर्तिकार ने उस पत्थर को अपने पास रख लिया। अगले दिन मूर्तिकार ने अपने छेनी और हथौड़ी की मदद से उस पत्थर पर वार करना चालू किया मगर वह पत्थर नहीं टूट रहा था। उसने बहुत बार उस पत्थर पर वार किया मगर पत्थर इतना कठोर था कि टूटा ही नहीं।

अगले दिन मूर्तिकार फिर सोचा चलो एक बार अंतिम प्रयास करते हैं इस पत्थर को तोड़ने के लिए, मगर फिर मूर्तिकार ने सोचा -” क्या फायदा! मैंने बहुत सारा प्रयास कर लिया यह पत्थर टूट ही नहीं सकता।” यही सोच कर उस मूर्तिकार ने बड़े पत्थर को महामंत्री के पास वापस कर दिया।

अब महामंत्री एक बहुत ही गरीब मूर्तिकार के पास और उसे कहा-” इस काट कर एक भगवान शिव की सुंदर सी प्रतिमा बना दो।”

उस मूर्तिकार ने कहा-” ठीक है महाराज! बन जाएगा।”

उस गरीब मूर्तिकार ने अपने छेनी और हथौड़े से उस पत्थर पर एक वार किया, पत्थर एक बार में ही टूट गया और उस गरीब मूर्तिकार ने कुछ ही दिनों में उस पत्थर को काटकर एक सुंदर सी भगवान शिव की प्रतिमा बना दिया और महामंत्री को सौंप दिया।

अब वह महामंत्री सोचने लगा कि अगर पहले वाले मूर्तिकार ने एक बार और अंतिम प्रयास कर लिया होता तो शायद वह मूर्ति को बना देता।

मूर्ति बनने के बाद महामंत्री ने उस गरीब मूर्तिकार को 100 सोने के सिक्के दिए। जिससे वह अपनी जरूरत की चीजों को पूरा कर लिया और खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करने लगा।

इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें हार नहीं मानना चाहिए और लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि हो सकता है की अंतिम प्रयास ही सफल हो जाए।

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