आज हम जिस दौर से गुजर रहे है , वह है युवा मन का दरद , जो काफी गहरा है | अपनी सपने और अपनों के बोझ तले युवा मन का अस्तित्व चरमरा रहा है | उनमे कुछ ख़ास करने की चाहत है , पर कैसे उनको पता नहीं , उनको कोई बताने वाला , राह दिखाने वाला नहीं मिलता |
माँ – बाप अपने बच्चो को आसमान की बुलंदियों पर देखना चाहते है , लेकिन बेटे और बेटी के दिल का हाल जानने के लिए उनके पास वकत नहीं है | पढ़ाई और अन्य खर्चो के लिए धन जुटा देना यही उनके लिए सब कुछ है | समय – समय पर उनको जताते रहते है की मैंने तुम्हारे लिए क्या-२ नहीं किया है , तुम्हारे लिए क्या सुभिधा और सहूलियत जुटाए | उनके इन बातो के बोझ से उनके लाडले और लाडली का मन दबा जा रहा है , इसकी उनको खबर तक नहीं है |
युवक और युवकियो के इस दरद की पहली सुरुवात तब होती है जब वो किसोरा अवस्था मई कदम रखते है | यह अवस्था शारीर और मन के परिवर्तन का दौर होता है | लड़का हो या लड़की मैंने देखा है की यह परिवर्तन दोनों मे आता है | परिवर्तन के साथ मन की चाहत भी बदलती है ,कल्पनाओं और सपनो का नया संसार सुरु होता है| इसको वो बताना तो चाहते है , पर उन्हें कोई सुनाने को तैयार नहीं होता | और हा बात -२ मे माँ- बाप से झिड़कियाँ सुनने को जरूर मिलती है की अब तुम छोटे नहीं रहे , तुम को समझना चाहिए कम से कम अब तो तुम्हे अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए | बहुत हो गया खेल खेलवार अब तो सुधर जाओ |
जबाब मे वे जब कहना चाहते है माँ मेरे भी बात सुन लो , पापा मेरी भी बात सुनलो , पर उनकी यह आवाज मन के कोनो मे ही गुज कर रह जाती है , उनको सुनने वाला कोई नहीं होता है | इसी अवस्था मे करयिर और पढ़ाई की दिशा तय होती है | मेडिकल , इंजीनियरिंग , मैनेजमेंट , कंप्यूटर या कोई और दिशा मे उनका भविस्य तय होता है | बहुत ही काम माता – पिता होते है जो अपने बच्चो की रुचि के अनुसार काम करते है | लेकिन बहुत जादा माँ – बाप अपनी रेपुटेशन के चकआर मे अपने बच्चो का भविस्य खराब कर देते है , और बच्चे भी क्या करे चुप- चाप जो पापा कहते है वो कर लेते है ,आखिर उनके पैसो पर उनको जिन्दगी जो जीनी है , यही से सुरुवात होता है बे मेल जीवन का दरद |
जब पहिया सही नहीं चल पाती है तो अभिभवकों की करी फटकार सुनने को मिलते है , अपने नकार होने के बात लगभग रोज ही सुनने को मिलते है ,और अपने निकम्मेपन का प्रमाण रोज ही मिलते है | हर बात पर उनको या बताया जाता है की वो किसी काम के नहीं है , कभी -२ तो इस्थिती यह बन जाती है की नवयुवको मे डर सा समां जाता है | रिजल्ट यह होता है की मन चीखता है , पर यह चीख अंदर ही अंदर घुट कर रह जाती है |
यह दरद सिर्फ मेरा नहीं , लघभग सभी युवाओ का है , मैंने एक पत्रिका मे पढ़ा जिसमे एक लड़का ने जयादा सम्बाद पूछने पर यह बात बोल – दरअसल किसी को किसी से कोई मतलब नहीं , हमारे पापा लोग हमारे लिए केवल पैसा जुटाते है , ज्यादा हुवा तो हमारे सपनो को घास – भुस की चिंगारी लगाते है , उनको अपने दोस्तों , रिस्तेदारो को यह बताने मे खुशी मिलती है की उनका लड़का डॉक्टर या इंजीनियर बन रहा है | डॉक्टर या इंजीनियर बनते ही बड़ी सी जॉब मिल जायेगा | यदि कभी उन्होंने ने बात की तो जिम्मेदारी और नैतिकता की घुटी पिला देते है | जो दोस्त है वो टाइम पास है क्युकी अपनी-२ सपनो के घोड़े पर सरपट दौर रहे है | इसके लिए ,माँ – बाप को सकरात्मक रवैया अपनाना चाहिए |
युवा मन की दर्द हमारे बड़े लोगो को समझाना होगा , तभी हम एक कामयाब जीवन जी सकेंगे |
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